आज्यो आज्यो जी साँवरिया म्हारे देश, ऊभी जोऊँ बाटड़ली ॥
साबण आवण कह गया जी, कर गया कौल अनेक ।
गिनतां गिनतां घिस गई जी, म्हारी आँगलियाँरी रेख ॥१॥
कागद नहीं स्याही नहीं जी, नहीं किणरो प्रवेश ।
पंछीको परवेश नहीं है, किस विध लिखूँ सन्देश ॥२॥
साँवराने ढूँढ़त जुग भया जी, धोला हो गया केश ॥३॥
मोर मुकुट तन काछनी जी, घुँघरवारा केश ।
मीराने गिरधर मिल्या जे, धर नटवरका भेष ॥४॥