ऊधो ! मधुपुरका बासी ।
म्हारो बिछड़यो श्याम मिलाय, विरहकी काट कठण फाँसी ॥
स्याम बिनु चैन नहीं आवे ।
म्हारो जबसे बिछड़यों स्याम, हीवड़ो उझल्यो ही आवे ॥
छाय रही व्याकुलता भारी ।
म्हारे स्याम-विरहमैं आज नैनसैं रह् यो नीर जारी ॥
स्याम बिनु ब्रज सूनो लागै ।
सूनी कुंज तीर जमुनाको, सब सूनो लागै ॥
गोठ-बन स्याम बिना सूनो ।
म्हारै एक-एक पल जुग सम बीते, बिरह बढ़ै दूनौ ॥
ऊधो ! अरज सुणो म्हारी ।
थारो गुण नहिं भूलाँ कदे, मिलाद्यो मोहन बनवारी ॥