रामा रामा रटते रटते बीती रे उमरिया ,
रघुकुल नन्दन कब आवोगे भिलनीकी डगरिया ॥ टेर॥
मैं भिलनी सबरी की जाई, भजन भाव नहीं जानूँ रे,
राम तुम्हारे दरसन के हित , बन में जीवन पालूँ रे,
चरण कमल से निर्मल कर दो दासीकी झुँपड़िया ॥१॥
रोज सबेरे बन में जाकर, रस्ता साफ कराती हूँ,
अपने प्रभु के खातिर बन से, चुन-चुन के फल लाती हूँ,
मीठे-मीठे बेरन की भर ल्याई मैं छबड़िया ॥१॥
सुन्दर श्याम सलोनी सूरत, नैनु बीच बसाऊँगी,
पदपंकजकी रज धर मस्तक, चरणोंमें सीर नवाऊँगी,
प्रभुजी मुझको भूल गये क्या, ल्यो दासीकी खबरिया ॥३॥
नाथ तुम्हारे दरसन के हित मैं अबला एक नारी हूँ,
दरसन बिन दोउ नैना तरसे, दिलकी बड़ी दुख्यारी हूँ,
मुझको दरसन देवो दयामय, डालो म्हैर नजरिया ॥४॥