बनमें देख्या दोय बनवासी, वाँरो मुख देख्याँ दु:ख जासी ए माय !
भेज-पत्रके वस्त्र पहिरे, वे तो अपने नगर होय आसी ए माय !
नयनोंसे सखी निरखन लायक, वाने कौन किया बनवासी ए माय !
धन वाँरी मात पिता वाँरा धन है, वे तो हिवड़ो फाट मर जासी ए माय !
तुलसीदास आस रघुवरकी, वारे चरणकमल चित लासी ए माय !