म्हाने साची बताओ दीनानाथ बिरज कब आवोगा ॥टेर॥
फूलाँ भरी है छाबड़ी जी माला पोई चार ।
यह माला साँवरियो पहर सहश्र गोपीयारो ॥ दीनानाथ ॥
कोरी कुलड़ियांमें दही जमायो मिसरी को जावण देय ।
पत्ते को तो दुनो बनायो भोग लगायो ॥ दीनानाथ ॥
पाना भरी है छाबड़ी जी बीड़ी बान्धी चार ।
यह बीड़ी साँवरियो चाव सहश्र गोपी बारो ॥ दीनानाथ ॥
चुन चुन फुलड़ां सेज बिछाई अंतर दियो छिटकाय ।
यह सेजां साँवरियो सोव सहश्र गोपीयारो ॥ दीनानाथ ॥
चूँगत छोड़ा बाछड़ा जी रामत छोड़ी गाय ।
वृन्दावन मैं बेगा पधरो रास रचावो ॥ दीनानाथ ॥
चन्द्रसखी की विनती जी सुनियो चित्त लगाय ।
फूलदोल पर आया रीजो नहीं तो तजूँगी मैं पराण ॥ दीनानाथ ॥