कोई कहियो रे प्रभु आवनकी, आवनकी मनभावनकी ॥ टेक !!
आप न आवै लिख नहिं भेजै बाण पड़ी ललचावनकी ।
ए दो नैण कह्यो नहीं मानै, नदियाँ बहै जैसे सावनकी ॥१॥
कहा करुँ कछु नहिं बस मेरो, पाँख नहीं उड़ जावनकी ।
मीरा कहै प्रभु कबर मिलोगे, चेरी भई हूँ तेरे दाँवन की ॥२॥