ऐ श्याम ! तेरी बँसरी ने क्या सितम किया ?
तनकी रहा न होश मेरे मनको हर लिया ॥१॥
वंशीकी मधुर टेर सुनी प्रेम-रस-भरी ।
ब्रज नार लोक-लाज काम-काज तज दिया ॥२॥
नभमें चढ़े विमान खड़े देवगण सुने ।
मुनियोंका छूटा ध्यान प्रेम-भक्ति-रस पिया ॥३॥
पशुओंने तजी घास पंछी मौन हो रहे ।
जमु नाका रुका नीर पवन धीर हो गया ॥४॥
ऐसी बजाई बँसरी सब लोक वश किया ।
‘ब्रह्मानन्द’ दरस दीजिये, मोहे रास के रसिया ॥५॥