सर्वव्याधिहरव्रत
( शातातपादि ) - श्रेष्ठ पात्रमें उत्तम श्रेणीके चावल भरकर उसे वस्त्रसे ढक दे । फिर उसमें हर प्रकारकी व्याधियोंके उपस्थित होनेकी भावना करके उनका गन्ध - पुष्पादिसे पूजन करे । साथ ही विद्वान् ब्राह्मणका पूजन करके उस तण्डुलसे भरे हुए पात्रको श्रद्धाके साथ उसे दान दे, उस समय
' ये मां रोगाः प्रबाधन्ते देहस्थाः सततं मम । गृह्णीष्व प्रतिरुपेण तान् रोगान् द्विजसत्तम ॥'
इस श्लोकका उच्चारण करे । तदनन्तर प्रतिग्राहीको यथाशक्ति वस्त्राभूषण, भोजन और दक्षिणा आदि देकर विदा करे । इससे सम्पूर्ण रोग शान्त होते हैं ।