दद्रुहरव्रत
( सूर्यारुण २९६ ) - गौ, ब्राह्मण और देवता आदिके स्थानमें, सर्वसाधारणके बैठने - उठनेके स्थानोंमें, नद, नदी, तालाब या किसी भी जलाशयमें अथवा पुण्य करनेके स्थान, मकान या तीर्थोमे मल - मूत्रादिका त्याग करनेसे ' दद्रु ' ( दाद ) रोग होता है । इसकी निवृत्तिके लिये सुवर्णमय चतुर्भुज शिवजी, द्विभुज पार्वतीजी और चाँदीका नन्दिकेश्वर ( नाँदिय ) तथा घण्टा बनवाकर वेदपाठी ब्राह्मणसे पूजन करावे और
' सर्वेश्वराय विद्महे शूलहस्ताय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ।'
अथवा ' त्र्यम्बकं यजामहे०' या ' ॐ नमः शिवाय ' के जप और इनके दशांश हवन करके दारिद्रयग्रस्त, धर्मज्ञ एवं परिवारयुक्त ब्राह्मणको उपर्युक्त शिव - पार्वती नाँदिया और घण्टाका अन्य सामग्रियोंसहित दान करे । दान देते समय यह प्रार्थना करे कि
' कैलाशवासी भगवानुमया सहितः परः । त्रिनेश्च हरो दद्रुरोगमाशु व्यपोहतु ॥'
इसके बाद दान लेनेवालेको विदा करे ।