गलगण्डहरव्रत
( सूर्यारुण २७९ ) -
अध्यापक तथा गुरुके साथ प्रवञ्चनात्मक व्यवहार करने या गलेमें वात, कफ और मेद होनेसे उसके दोनों ओर गलगण्ड ( गलसूंडे ) हो जाते हैं । इनकी शान्तिके लिये ताँबाके पात्रमें यथाशक्ति काले तिल भरकर उनके ऊपर मोतियोंकी माला रखे और उसे पञ्चोपचारोंसे पूजन करके शुद्धहदय ( निष्कपट ) सदाचारी तथा धनहीन ब्राह्मणको दान दे और ग्रहशान्ति करे । इससे गलगण्ड शान्त होता है । व्रत करना भी आवश्यक है ही ।
वातः कफश्चापि गले प्रदुष्टो मन्ये समाश्रित्य तथैव मेदः ।
कुर्वन्ति गण्डं क्रमशस्त्रलिङ्गै समन्वितं तं गलगण्डमाहुः ॥ ( माधव )