सुतहीनत्वदोषहरव्रत
( सूर्यारुन ९६ ) - पराये पुत्रोंका प्राणान्त करनेके पापसे पुत्रहीनता प्राप्त होती है । इसकी निवृत्तिके लिये सोनेके पात्रमें सगभी स्त्रीका चित्र बनवाकर उसका पूजन करे और
' आर्यामेनां च सौवर्णी वस्त्राढ्यां विधिदैवताम् । ददेऽहं विप्रमुख्याय पूजिताय विधानतः ॥
गर्भपातनजाद्दोषात्पूर्वपापविशुद्धये ।'
इसका उच्चारण करके सत्पात्रको दे । इसके अतिरिक्त गायत्री अथवा त्र्यम्बक मन्त्नके पचीस सौ जप और व्रत करनेके अनन्तर हवन और ब्राह्मण - भोजन करावे ।