संग्रहणीशमनव्रत
( शिवगीता ) - प्रेमपूर्वक २ सद्वर्ताव करनेवाली श्रेष्ठ स्त्रीका त्याग करने या अतिसारमें कुपथ्य करनेसे उदरगत छटीकला ( ग्रहणी ) के नष्ट होनेसे ' संग्रहणी ' होती है । इससे मुक्त होनेके लिये किसी पुनीत पर्वमें या शनिप्रदोष हो उस दिन प्रातःस्त्रानादिसे निवृत्त होकर शिवजीका पूजन करे और वहीं उनके समीपमें ' शिवसंकल्पसूक्त '
( यज्जाग्रतो०, येन कर्माण्य०, यत्प्रज्ञान०, येनेदं भूतं०, यस्मिन्नृचः०, सुखारथि० - इन छः मन्त्रो )
का १०८ जप करके सौंफ, मिर्च, इलायची और मिश्रीको घीमें भिगोकर पलाशकी समिधाओंमें अट्ठाईस आहुतियाँ दे और शहदमें सुवर्ण डालकर उसका दान करके नक्तव्रत करे । इस प्रकार दस दिन करनेके अनन्तर ग्यारहवें दिन यथाशक्ति अन्नदान करे तो संग्रहणी शमन होती हैं ।
साध्वीं भार्यां च यो मर्त्यः परित्यजति कामतः ।
ग्रहणीरोगसंयुक्तः सदा भवति मानवः ॥ ( शिवगीता )