नेत्रादिसर्वरोगहरव्रत
( शौनकव्याख्या ) - ताँबेके पात्रको जलसे पूर्ण करके उसमें लाल चन्दन और लाल पुष्प तथा लाल अक्षत डाले और उस जलसे अर्घा अथवा दोनों हाथोंकी अञ्जलि भरकर
' ॐ उद्यन्नद्य मित्रसह सूर्यं तर्पयामि १'
यह मन्त्न बोलकर सूर्यके सम्मुख छोड़ दे । इसी प्रकार
' ॐ आरोहन्नुत्तरां दिशं सूर्यं तर्पयामि २, ॐ हद्रोगं मम सूर्य सूर्यं तर्पयामि ३, ॐ हरिमाणं च नाशय सूर्यं तर्पयामि ४, ॐ शुकेषु हरिमाणं सूर्यं तर्पयामि ५, रोपणाकासु दध्मसि सूर्यं तर्पयामि ६, अर्हो हारिद्रवेषुवे सूर्यं तर्पयामि ७, ॐ हरिमाणं निदध्मास सूर्यं तर्पयामि ८, ॐ उदगादयमादित्यः सूर्यं तर्पयामि ९, ॐ विश्वेन सहसा सह सूर्यं तर्पयामि १०, ॐ द्विषन्तं मह्यं रंधयन् सूर्यं तर्पयामि ११, ओमोमहं द्विषतेरधं सूर्यं तर्पयामि १२ ।'
इनके उच्चारणसे सूर्यके सम्मुख जल छोड़े । इसके पीछे उपर्युक्त
' उद्यन्नद्य १ मित्रसह आरोहन्नुत्तरां दिशं सूर्यं तर्पयामि ।'
कहकर सूर्यके सम्मुख जल छोड़े । इस प्रकार दो - दोके उच्चारणसे दूसरी बार और फिर उक्त ' उद्यन्नद्य०' आदि चार -चार पदके एक - एक करके ' सूर्य तर्पयामि ' कहते हुए तीसरी बार जल छोड़े । इसमें पहलेमें बारह, दूसरेमें छः और तीसरेमें तीन जलाञ्जलि दी जाती है । ये सम्पूर्ण तीन ऋचा हैं । जिनके बारह पदोंसे बारह, दो - दोके युगलसे छः और चार - चारके पूरे मन्त्नसे तीन जलाञ्जलियाँ दी जाती हैं । इस तर्पणसे नेत्रसम्बन्धी सर्वरोगोंका शमन तो होता ही है, श्रद्धाके साथ पाद - ऋचाओंसे बारह बार, अर्धऋचाओंसे दस बार, सर्वऋचाओंसे तीन बार, सार्धऋचासे दो बार और तीनों ऋचाओंसे एक बारकी कुल चौबीस जलाञ्जलि देकर तर्पण करनेसे नेत्ररोग, ज्वरोग, विस्फोटक और सर्पविषतक दूर हो जाते हैं । परंतु यह ध्यान रखना आवश्यक है कि सामान्य या कठिन - जैसा रोग अथवा विष हो उसीके अनुसार २ अटठाईस या एक सौ आठ बार तर्पण करे ।
१. उद्यन्नद्येति मन्त्रोऽयं सौरः पापप्रणाशनः ।
रोगघ्नश्च विषघ्नश्च भुक्तिमुक्तिफलप्रदः ॥ ( शौनक )
२. ' अस्य सकलस्यापि तर्पणप्रयोगस्य व्याध्यनुसारेणा -
ष्टाविंशातिरष्टोत्तरशतमित्याद्यावृत्तिः कल्पनीया ।' ( अनु० प्रकाश )