विषूचिकोपशमनव्रत
( योगवासिष्ठ ) - दुष्ट भोजन, २ दुष्टारम्भ, दुष्ट संग, दुष्ट स्थिति और दुर्देशवास या अजीर्णकी अवस्थामें उदरके १ अंदर सूई गड़ने - जैसी पीड़ा होनेसे विषूचिका रोग ( हैजा ) होता है । इसको रोकनेके लिये मन्त्र - शास्त्री धर्मप्राण साधकको चाहिये कि वह विषूचिकावाले रोगीको प्राण - दान देनेकी कामनासे तत्काल पवित्र होकर रोगीके उदरपर बायाँ हाथ रखे और दाहिने हाथसे
' ॐ ह्लीं ह्लीं रां रां विष्णुशक्तये नमः । ॐ नमो भगवति विष्णुशक्तिमेनाम् ।
ॐ हर हर नय नय पच पच मथ उत्सादय दूरे कुरु स्वाहा ।
हिमवन्तं गच्छ जीव सः सः सः चन्द्रमण्डलतोऽसि स्वाहा ।'
इस मन्त्रसे हिमालयके उत्तर पार्श्वमें रहनेवाली कर्कशा कर्कटी राक्षसी ( अथवा बीमारके प्लीहा पद्म या नाभिप्रदेशके उत्तर प्रदेशमें सूई गड़ानेके समान असहनीय दर्दं करनेवाली विषूचिका राक्षसी ) का मार्जन करे और व्रत रखे । इस प्रकार जबतक वेगहीन न हो तबतक करता रहे । इससे विषूचिकावालेको शान्ति प्राप्त होती है ।
१. दुर्भोजना दुरारम्भा मूर्खा दुःस्थितयश्च ये ।
दुर्देशवासिनो दुष्टास्तेषां हिंसां करिष्यति ॥ ( यो० वा० )
२. सूचीभिरिव गात्राणि तुदन् संतिष्ठतेऽनिलः ।