उदरगुल्महरव्रत
( सूर्यारुण २९७ ) - इक्षुविकार ( गुड़, शक्कर, चीनी और मिश्री ) आदि चुरानेसे पेटके अंदर अनिष्टकारी फोड़ा उत्पन्न होता है । इन दिनों उसकी ' ट्यूमर ' नामसे प्रसिद्धि है और विशेषज्ञ वैद्य बड़ी सावधानीके साथ अस्त्रक्रियासे उसका निपात करते हैं । किसी स्त्रीके यह हो जाता है तब उसे गर्भस्थलीमें बालक होने - जैसा अभ्यास होता है और वह यथाक्रम उसी प्रकार उसी प्रकार बढ़ता है । परंतु प्रसव - कालकी पूर्ण अवधि पूरी हो जानेपर भी कुछ न हो, तब उस उपद्रवका स्वरुप मालूम होता है । अस्तु, उदरगुल्मके लिये सूर्यारुणमें लिखा है कि गुड़ - धेनुका दान करके ' मुञ्चामि०' सूक्तके एक लाख जप और ' वात आयातु भेषजं०' से शाल्मली ( सेमलवृक्ष ) की समिधाओंमें घी और शक्करकी दस हजर आहुतियाँ देकर ब्राह्मणोंको भोजन करावे और स्वयं व्रत करे ।
स्त्रीणामार्तवजो गुल्मो न पुंसामुपजायते ।
अन्यस्त्वसृग्भवो गुल्मः स्त्रीणां पुंसां च जायते ॥ ( छारपाणि )
गुल्मिनामनिलः शान्तिरुपायैः सर्वशो विधिः । ( चरक )
कुपितानिलमूलत्वाद् गूढ़मूलोदयादपि ।
गुल्मवद्धा विशालत्वाद् गुल्म इत्यभिधीयते ॥ ( सुश्रुत )
संचितः क्रमशो गुल्मो महावास्तुपरिग्रहः ।
कृतमूलः शिरानद्धो यदा कूर्म इवोन्नतः ॥ ( माधव )