ज्वरहरर्पणव्रत
( मन्त्नमहार्णव ) - ज्वरवाले मनुष्यको चाहिये कि वह दशमी या सप्तमीके सुप्रभातमें प्रातःस्त्रानादि करनेके अनन्तर ताम्रपात्रमें जल, तिल, रँगे हुए लाल अक्षत और लाल पुष्प डालकर डाभके आसनापर पूर्वाभिमुख बैठे और अर्घामें अथवा अञ्चलिमें जल लेकर ' उष्ण ' ज्वर हो तो
' योऽसौ सरस्वतीतीरे कुत्सगोत्रसमुद्भवः । त्रिरात्रज्वरदाहेन मृतो गोविन्दसंज्ञकः ॥ ज्वरापनुत्तये तस्मै ददाम्येतत तिलोकदम् ।'
इस मन्त्नसे जल छोड़े और इस प्रकार १०८ बार तर्पण करे । यदि शीतज्वर या रात्रिज्वर हो तो
' गङ्गाया उत्तरे कूले अपुत्रस्तापसो मृतः । रात्रौ ज्वरविनाशाय तस्मै दद्यात् तिलोकदकम् ॥'
इस मन्त्नसे तर्पण करे । ज्वर यदि सामान्य हो तो १०८ बार और यदि विशेष हो अथवा बहुत दिनोंका हो तो ज्वरके अनुसार १०८ या १००१ अथवा १०००१ अञ्चलि दे । इस प्रकार एक, तीन, पाँच या सात दिन करे और एकभुक्त व्रत रखे ।