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दत्तावतरी धूनी वाले दादाजी

दत्तावतरी धूनी वाले दादाजी

दत्त संप्रदायातील सत्पुरूष


दत्तावतरी धूनी वाले दादाजी (गिरनार सौराष्ट्र)
धुनीवाले बाबाजी दत्तावतरी धूनी वाले दादाजी
दत्तावतरी धूनी वाले दादाजी की अद्भुत लीला

कोई ये नहीं जनता की 'दादाजी महाराज' कहाँ से और कैसे आए| श्री गौरी शंकर जी पहले इंसान थे जिन्हे दादाजी ने अपना 'शिव रूप' दिखाया था| गौरी शंकर  जी बहुत बड़े शिव भक्त थे| वे शिव जी के दर्शन के लिए व्याकुल थे| किसी ने उनसे कहा की ये माना जाता है 'नर्मदा कंकड़,शिव शंकर' (शिव जी नर्मदा के किनारे मिलेंगे)| करीब १८वी सदी में वे अफ़ग़ानिस्तान से निकल पड़े नर्मदा जी की ओर 'शिव जी' की खोज मे| वहाँ पहुँचने पर उनसे किसी ने कहा कि भोले नाथ तो नर्मदा के किसी भी तट पर मिल सकते हैं| बस तब से ही उन्होने परिक्रमा आरंभ कर दी|
इसी दौरान कई और साधू श्री गौरु शंकर जी के साथ परिक्रमा मे शामिल हो गये और करीब २०० साधुओं की एक 'जमात' बन गयी| उन्ही में से एक 'दादाजी' भी थे| 'दादाजी' पूरी जमात की बहुत सेवा करते थे| हर रोज़ रात को सबके सोने के बाद वे पूरी जमात के लिए बड़े बड़े बर्तनों मे 'मल्प्ोआ' और 'खीर' बनाते थे| कभी यदि घी कम पड़ जाता था तो वे रात मे माँ नर्मदा के किनारे जाते और अपना खाली बर्तन जल मे डालते और बर्तन मे भरा हुआ नर्मदा जल 'घी' मे बदल जाता था| बाद मे जब जमात के पास अपना घी हो जाता था तो 'दादाजी' वो घी नर्मदा जी मे डाल कर उन्हे वापस कर देते थे|
१२ परिक्रमाएँ करने के बाद भी जब गौरी शंकर जी को शिव जी के दर्शन नहीं हुए तो वे बहुत उदास हो गये और 'जल समाधि' लेने के लिए चल पड़े| जब वे नर्मदा के तट पर ही पहुँचे थे तो पीछे से एक छोटी बालिका ने उनकी उंगली पकड़ी और पूछा की वे क्या करने जा रहें है ? गौरी शंकर जी ने पूछा 'तू कौन है' ?तब उस बालिका ने बताया की वो नर्मदा हैं और वे जानती हैं की गौरी शंकर जी क्यों जल समाधि लेना चाहते हैं| गौरी शंकर जी ने अपनी नाराज़गी दिखाते हुए पूछा की यदि सचमुच वे माँ नर्मदा हैं तो अब तक उन्होने उनकी शिव दर्शन की ईछा क्यों नहीं पूरी की ? माँ नर्मदा ने कहा की उनकी अपनी ही जमात मे भगवान शिव हैं जो 'दादाजी' नाम से एक युवा के भेस में हैं| गौरी शंकर जी को यकीन नहीं हुआ| वे दौड़े दौड़े उस युवा के पास पहुँचे जो उस वक्त अपनी पीठ किए बर्तन धो रहा था| 'दादाजी' ने अपना मूह मोड़ कर गौरी शंकर जी की तरफ देखा तो उन्हे उनमें शिव जी का रूप नज़र आया| गौरी शंकर को यकीन नहीं हुआ और वे बार बार अपनी आँख मल के फिर देखते,फिर उन्हे कभी 'दादाजी' तो कभी शिव जी नज़र आते| जब ये कुछ देर तक चलता रहा तो भोले नाथ ने कहा की यदि आँखो पर विश्वास नहीं होता तो छू कर देख ले| जब गौरी शंकर जी ने 'दादाजी' को छूआ तो 'दादाजी' ने उन्हे पद्मासन मे बैठे साक्षात शिव रूप मे दर्शन दिए|
भगवान और भक्त के इस मिलन के बाद नर्मदा जी प्रकट हुई और कहा की उन्होने गौरी शंकर जी की शिव जी के दर्शन की अभिलाषा पूर्ण कर दी है|
अपनी इच्छा पूर्ण होने के बाद गौरी शंकर जी ने 'दादाजी' से कहा की अब आप मेरी गद्दी संभालें| 'दादाजी' ने कहा 'हम तुम्हारी गद्दी पे टट्टी करते हैं'| उन्होने कहा की अब वे जमात छोड़ कर आगे जाएँगे| उन्होने गौरी शंकर जी से ये भी कहा कि जमात मे अभी किसी को नहीं पता लगना चाहिए की वे कौन हैं| उनके कुछ किलोमीटर दूर जाने पर ही सब को ये बताया जाए की दादाजी ही शिव जी हैं|
दादाजी जमात छोड़ कर 'साइंखेड़ा' की ओर प्रस्थान कर गये और गौरी शंकर जी अपनी जमात को ले कर कुछ किलोमीटर दूर कॉकसर चले गये जहाँ उन्होने दादाजी का सच सबको बताया और जल समाधि ले ली|
ऐसा कहा जाता है कि 'दादाजी' होशंगाबाद मे 'दिगंबर' रूप मे 'रामलाल दाद' के नाम से पाए गये जहाँ उन्होने कई चमत्कार दिखाए| वे वहाँ तीन वर्ष तक रहे फिर कुएँ मे गिर कर अपना देह त्याग दिया|
कुछ ही दिनो बाद वे फिर से सोहागपुर के इम्लिया जंगल में दिगंबर रूप मे धूनी रमाए एक वृक्ष के नीचे बैठे मिले| गाओं वालो के आग्र्ह पे वे उनके साथ नर्सिंगपुर रवाना हो गये जो की नर्मदा तट से कुछ १०-१२ किलोमीटर पे है| वहाँ भी अपनी अध्भुत लीलाएँ दिखाई और कुछ समय बाद समधी ले ली|
वे एक बार फिर सीसीरी संदूक ग्राम जिले में 'राम्फल दादा' के नाम से प्रकट हुए| करीब १९०१ मे वे लोगों के दुख हरने और लोगों को पापों से मुक्त करने के लिए साइंखेड़ा आए जहाँ वे कई वर्ष रुके और अनगिनत चमत्कार दिखाए|
करीब १९२९ मे दादाजी साइंखेड़ा से प्रस्थान कर अपनी यात्रा के लिए निकल पड़े| वे छिपनेर,बगली,उज्जैन,इंदौर,नावघाट खेड़ी(बड़वा),दौुद्वा,और आख़िर मे खंडवा पहुँचे| वे वहाँ ३ दिन रुके,फिर वहाँ से प्रस्थान करने ही लगे थे की एक सेठानी 'पार्वती बाई' उनके रात के सामने आई और कहा कि 'मेरे दाल भात का भंडारा खा कर ही जाना पड़ेगा'| दादाजी ने उसे तीन बार इनकार किया और कहा कि मुझे जाने दे मेझे बहुत काम है| पर वो एक ना सुनी और दादाजी के रथ के सामने लेट गयी| जब बहुत मनाने पर भी वो नहीं हिली तो दादाजी ने कहा 'अच्छा भाई हम तो सोते हैं,तेरी तू जान'|
पार्वती बाई ने रथ के बाहर से ही दादाजी को नेवेत लगाया और दादाजी के उठने का इंतेज़ार किया| जब दादाजी बहुत देर तक नहीं उठे तो सब ने नेवेत का पर्शाद बाँट कर खा लिया| पहले भी बहुत बार हो चुका था जब दादाजी महाराज २-२,३-३ दिन 'सेन' मे रहेते थे(सोते थे)|
दो दिन बाद एक अजीब सा पागल आदमी पुलिस थाने गया और कहा की ये लोग पागल है| इनके दादाजी ने महासमाधी ले ली है और इनको पता ही नहीं| पुलिस वाला जब वहाँ पहुँचा जहाँ रथ खड़ा था और ये कहानी लोगों से कही तो वे सब अपनी समस्या ले कर 'छोटे दादाजी' के पास पहुँचे| लोगों को देख कर छोटे दादाजी ने तीन बार कहा 'हाँ हाँ भाई,दादाजी ने समाधि ले ली है, 'हाँ हाँ भाई,दादाजी ने समाधि ले ली है, 'हाँ हाँ भाई,दादाजी ने समधी ले ली है' और लोगों के साथ मिलकर उन्होने दादाजी के शरीर को रथ से निकाला और लकड़ी के बिस्तर पर लिटा दिया|
छोटे दादाजी ने वो जगह पैसे देकर खरीद ली और वहाँ दादाजी की समाधि बनाई| वहीं पर उन्होने अखंड धूनी भी जलाई और तपस्या की| वो धूनी आज तक प्रज्वलित है| 'छोटे दादाजी ने दादाजी की समाधि एवम् दरबार के २४ नियम आरती,पूजा इत्यादि के बनाए, जिनका आज तक हर दादा दरबार मे पालन होता है|
दादाजी की लीलाएँ

दादाजी का नाम देश भर मे आग की तरह फैल रहा था| काशी के कुछ साधुओं को ये बात हजम नहीं हुई की दादाजी 'शिव रूप' हैं| उन्होने दादाजी की परीक्षा लेने की सोची, उस समय दादाजी साइंखेड़ा मे थे| दादाजी तो अंतर्यामी थे, उन्हे इस बात का आभास था| साधुओं की टोली साइंखेड़ा पहुँचने से पहले से ही दादाजी ने अपनी जमात के साधुओं से कहना शुरू कर दिया की 'आज हमारी परीक्षा है, तैयार रहो', और जैसे ही काशी के साधु वहाँ पहुँचे, दादाजी ज़ोर ज़ोर से वेदों की ऐसी भाषा बोलने लगे जो की शायद बड़े से बड़े ज्ञानी को भी ना आती हो| काशी के साधुओं को अपनी सोच पर बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और वे दादाजी के चरणों मे गिर गये|
इसी तरह ३ व्यक्ति, एक डॉक्टर, एक वकील और एक टीचर जिन्होने दादाजी की परीक्षा लेने की सोची| उनका कहेना था की यदि दादाजी वास्तव मे भोले नाथ हैं तो उन्हे ज़हर पीने मे कोई आपति नही होनी चाहिए| वे तीनो दादाजी के पास फूलों की माला, मीठाई और अपने झोले मे ज़हर की बोतल लेकर पहुँच गये| दादाजी ने जैसे ही उन्हे देखा, कहा , 'मेरे लिए फूल और मीठाई लाए हो, लाओ लाओ मुझे दो' कहकर उनके झोले से ज़हर की बोतल निकाली और पी गये| ये देखकर तीनो व्यक्ति हैरान रह गये और अपनी भूल के लिए क्षमा माँग कर वहाँ से चले गये|
साइंखेड़ा मे दादाजी ने ऐसी बहुत सी लीलाएँ रची| बड़े बड़े साधु, संत भी दादाजी के दर्शन के लिए आया करते थे|
दादाजी 'बेल' वृक्ष के नीचे धूनी रमाय बैठा करते थे| वहीं पर एक औरत 'जीजा बाई' शिव जी की बहुत बड़ी भक्त थी| रोज़ सुबह शाम वो पास के शिव मंदिर मे पूजा के लिए जाया करती थी| एक दिन जब उसने मंदिर का द्वार खोला तो शिव जी के स्थान पर दादाजी को देखा| अचंभे से उसने जब उस तरफ देखा जहाँ दादाजी बैठते थे तो वहाँ दादाजी के स्थान पर उसे शिव जी दिखाई दिए|
दादाजी के पास लोग आते तो अपनी मर्ज़ी से थे परंतु जाते दादाजी की आग्या से ही थे| 'सलिग्रम पटेल' नाम का एक व्यक्ति दादाजी के दर्शन के लिए आया| १७-१८ दिन हो गये पर उसे जाने की आग्या नहीं हुई| एक रात दादाजी अपनी टोली के साथ धूनी रमाय बैठे थे| अचानक दादाजी ने उस व्यक्ति को नर्मदा से जल लाकर धूनी मे डालने को कहा| उसके ऐसा करने के बाद दादाजी उसे गुस्सा करने लगे और गाली देकर कहा 'कब से यहाँ पड़ा है, जा घर जा'| उस व्यक्ति को कुछ समझ नही आया और अपना समान लेकर वहाँ से चल पड़ा| रात बहुत हो गयी थी, जाने का कोई साधन नही मिला, किंतु दादाजी की आग्या अनुसार कैसे तैसे जब वो अपने गाओं पहुँचा तो देखकर हैरान रह गया कि उसका पूरा गाओं आग से जल कर राख हो चुका था, केवल उसी का मकान ज्यों का त्यों था| पूछने पर पता चला कि जिस समय उसका मकान छोड़ कर हर जगह आग लगी थी ठीक उसी समय दादाजी उससे धूनी मे जल डलवा रहे थे|

दादाजी को बच्चों से बहुत प्रेम था| एक बार एक बालक रात को सड़क की लाइट के नीचे बैठ कर अपनी पड़ाई कर रहा था कि एक हवलदार ने उसे पकड़ कर अंदर बंद कर दिया| जब दादाजी को ये पता लगा तो वे बहुत नाराज़ हुए और वहाँ की सारी स्ट्रीट लाइटें अपने डंडे से तोड़ दी| हवलदार ने उन्हे भी उस बच्चे के साथ अंदर बंद कर दिया| बंद करके जब वो बाहर आया तो देखा कि दादाजी तो अपना डंडा लिए सड़क पर खड़े उसकी ओर मुस्कुरा रहें हैं, हैरान हो कर वो अंदर देखने गया तो दादाजी बच्चे के साथ अंदर बंद दिखे, फिर से वो बाहर आया तो दादाजी बाहर दिखे| उसने कान पकड़ लिए और दादाजी से माफी माँग कर बच्चे को छोड़ दिया|
साइंखेड़ा मे एक औरत दादाजी के पास अपना दुख लेकर आई| वो बहुत ग़रीब थी इसीलिए उसकी जवान बेटी की शादी नही कर पा रही थी| दादाजी ने उससे कहा वे उसके घर अगले दिन सुबह मे आएँगे| अगले दिन सुबह सुबह दादाजी उस औरत के घर पहुँच गये| औरत ने दादाजी को पर्णाम किया| 'बाजू हट, मुझे टट्टी करनी है' कहकर दादाजी उसकी रसोई मे गये और उसके चूल्‍हे पर बैठ कर टट्टी(लेट्रिन्ग) कर दी और उस औरत से कहा की इसे राख से ढक दे|
जब उस औरत का पति घर आया तो बहुत नाराज़ हुआ,बोला 'तेरे गुरु को यही जगह मिली थी टट्टी करने के लिए'| उसने अपनी औरत से कहा की इसे फेक दे और चूल्हा साफ कर दे| जब उस औरत ने राख से ढकी टट्टी को उठाया तो उसे वो भारी लगी और जब फैंकने लगी तो देखा टट्टी सोने मे बदल गयी थी| उन दोनो ने उसे धोया और एक प्लेट मे डाल कर दादाजी के पास गये| दादाजी ने उन्हे आता देख दूर से ही कहा 'मुझे क्यों दिखाती है, जा जाकर अपनी बेटी की शादी कर'| जब वे दोनो दादाजी के करीब पहुँचे तो दादाजी ने उन्हे गुस्सा करते हुए कहा 'तुम्हे समझ नही आता,ये मैने तुम्हारी बेटी की शादी के लिए किया है| उन दोनो ने उस सोने के एक टुकड़े से बेटी की शादी कर दी और बाकी के सोने से गहने बनवा लिए| जिस लड़की की शादी हुई थी उसकी पुश्तों के पास आज भी उस सोने के बनाए गहने है|
ऐसे कई किस्से हैं जहाँ दादाजी ने अपने भक्तों को मुसीबतों से निकाला है| दादाजी एक ऐसे महान संत थे जिन्हे 'जन कल्याण' के लिए कभी वेदों, शस्त्रों,एवं मंत्रों की ज़रूरत नहीं पड़ी| उनका तो अपना ही अनोखा तरीका था लोगों को पार उतारने का| वे भक्तों को गाली देते, डंडा मारते और उनके दुख हरते थे| उनके डंडे की मार खाने के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती थी परंतु कुछ ही भाग्यशालियों को ये सौभाग्य मिलता था| ऐसे थे हमारे प्यारे श्री दादाजी धूनीवाले|

जै श्री दादाजी की|

अंनतकोकोटी ब्रम्हाण्ड नायक राजाधिराज योगिराज भक्त प्रतिपालक परब्रम्ह सच्चिदानंद सद्गुरु श्री धूनी वाले दादाजी महाराज की जय

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Last Updated : May 15, 2024

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