जिसके जन्मसमयमें बृहस्पति चन्द्रमासे प्रथम स्थित हो वह जीवयोग्य व्याधिरहित, शूर ( वीर ), धनवान् होता है ॥१॥
जिसके बृहस्पति चन्द्रमासे दूसरे हो वह राजासे मान पानेवाला, सौ वर्षकी उमरवाला, अधिक क्रूर प्रतापवाला, धर्मवान्, पापसे रहित होता है ॥२॥
जिसके बृहस्पति चन्द्रमासे तीसरे हो वह स्त्रियोंका प्यारा, पिताके घरसे सत्रह वर्षमें धनकी वृद्धिवाला होता है ॥३॥
जिसके बृहस्पति चन्द्रमासे चतुर्थ स्थित हो वह सुख करके हीन माताके पक्षमें बडा कष्टी, दूसरोंके घर काम करनेवाला होता है ॥४॥
जिसके बृहस्पति चन्द्रमासे पंचम स्थित हो वह दिव्यदृष्टिवाला, तेजवान्, पुत्रवती स्त्रीवाला, अत्यंतक्रूर और महाधनी होता है ॥५॥
जिसके बृहस्पति चन्द्रमासे छठे हो वह उदासी, गृहसे हीन, विदेशमें आयुको बितानेवाला, भिक्षासे भोजन करनेवाला होता है ॥६॥
जिसके बृहस्पति चन्द्रमासे सातवें स्थित हो वह अधिक उमरवाला, व्ययरहित, स्थूल ( मोटी ) देहवाला, नपुंसक, पाण्डुवाला और घरके मध्यमें नायक होता है ॥७॥
जिसके बृहस्पति चन्द्रमासे आठवें स्थित हो वह सदा देहरोगी, अच्छे पितावाला होनेपरभी महाक्लेशवाला, स्वप्नमें भी सुख न पानेवाला होता है ॥८॥
जिसके बृहस्पति चन्द्रमासे नवम स्थित हो वह धनवान्, धन करके युक्त, अच्छे मार्गमें चलनेवाला देवता गुरुका सेवक होता है ॥९॥
जिसके बृहस्पति चन्द्रमासे दशम हो वह पुत्र स्त्रीको त्याग करके तपस्वी होता है ॥१०॥
जिसके बृहस्पति चन्द्रमासे ग्यारहवें हो उसके पुत्र घोडेपर सवार होकर चलते हैं और राजाके समान वह मनुष्य होता है ॥११॥
जिसके बृहस्पति चन्द्रमासे बारहवे स्थित हो वह कुटुंबसे विरोध करनेवाला होता है तया लग्नसे छठे स्थानके स्वामीकी दशामें सुख होता है ॥१२॥
इति गुरुभावाध्यायः ॥