कल्याण, लक्ष्मी और सौख्यको देनेवाली, पुत्र और जयको उत्पन्न करनेवाली, तुष्टिपुष्टिको देनेवाली, मांगल्य उत्साह करनेवाली, गत अथवा वर्तमान अच्छे बुरे कामोंको प्रगट करनेवाली, नानाप्रकारकी संपत्को देनेवाली, धन कुल और यशको बढानेवाली, दुष्टजनों आपदा और विघ्नको नाश करनेवाली और विविध गुणोंसे पूर्ण जन्मपत्रीको लिखता हूं ॥१॥
श्रीकरके युक्त आदिनाथ ( ईश्वर ) आदि लेकर जिनेश तथा पुंडरीक आदि लेकर गणेश, सूर्यादिग्रह, राशियुक्त भाव सदा कल्याण करें ॥२॥
दशअवतारोंको धारण करनेवाले, लोकमें एक ही योद्धा, गोपियोंकरके सेवित पादपद्म ऐसे श्रीकृष्णचन्द्र पुरुषोत्तम मुझे और तुम्हारे सबके अर्थ संपूर्ण यथेष्ट फलको देवें ॥३॥
राजालोगोंकरके आदरपूर्वक स्तूयमान श्रीभगवान् पार्श्वनाथ हमारी रक्षा करें और तुम्हारे कल्याण, लक्ष्मी और प्रियवस्तुकी रक्षा करें जिस मालिकके स्मरण करनेसे सूर्य आदि ग्रह संपूर्ण देहधारियोंको कुशलता देवें ॥४॥
सूर्यनारायण पराक्रम, चन्द्रमा उच्च पदवी, मंगल सुंदर मंगल, बुध उत्तम बुद्धि, बृहस्पति गुरुता, शुक्र, सुख, शनि हर्ष, राहु विपुल बाहुबल और केतु कुलकी उन्नतिको करैं. इस प्रकार संपूर्ण प्रसन्न ग्रह तुम्हारे अर्थ सदा प्रीतिके करनेवाले होवें ॥५॥
श्रीकमलासन, भगवान् विष्णु जिष्णु ( जैनीदेवता ) उमापति पुत्रसहित कल्याणको, ज्ञानको और निर्विघ्नताको देवैं । चन्द्रमा, शुक्र ( आस्फुजित् ), अर्क ( सूर्य ), भौम, बृहस्पति ( धिषण ) शनैश्चर और ज्ञ ( बुध ) इनकरके सहित ज्योतिषचक्र सदा तुम्हारी आयुको बढावै ॥६॥
श्रीसूर्यनारायण राज्यत्वको, चन्द्रमा उत्तम प्रीतिको, भौम मांगल्यताको, बुध बुद्धिको, बृहस्पति निर्मल गौरव ( बड़ाई ) को, शुक्र साम्राज्यसुख अर्थको देवैं, शनैश्चर शत्रुओंका नाश करै और राहु तनुधारियोंके रोगका क्षय करैं ॥७॥
श्रीमान् सूर्यनारायण, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु एवं गणेश ब्रह्मेश और लक्ष्मीधर सदा उसकी रक्षा करै जिसकी उत्तम पत्री लिखता हूं ॥८॥
उदकयंत्रका साधन नहीं किया, न नक्षत्रोंको देखा है तया शंकुका धारण मी नहीं किया है, केवल दूसरेसे बतायेहुए समयको जानकर मनुष्योंके जन्मफलको लिखता हूं ॥९॥
ललाटचक्र ( माथे ) में जो ब्रह्माने लिख दिया है तथा जो जो षष्ठे ( छठी ) के दिन अक्षरमालिका लिखी है उस जन्मपत्रीको मैं प्रकट ( प्रकाश ) करता हूं जैसे दीपक घोर अंधेरेसें रक्खीहुई वस्तुको प्रकट करता है ॥१०॥
जबतक पृथ्वीपर मेरु पर्वत स्थिर है और जबतक सूर्य चन्द्रमा हैं तबतक यह बालक आनंद करै जिसकी यह जन्मपत्री है ॥११॥
शुभ और अशुभ फलको प्रकट करनेवाली जन्मपत्री जिसकी नहीं है, उसका जीवन रात्रिमें दीपहीन मंदिरके समान अन्धकारमय है ॥१२॥
जिसकी यह जन्मपत्री है उसकी वंशवेल बढै, दिशाओंमें कीर्ति फैले और आयुर्दाय अधिक बढै ॥१३॥
जिसको वेदान्तके ज्ञाता ब्रह्म और अन्य सबसे पर प्रधानपुरुष कहते हैं, संसारके उत्पन्न करनेको कारण ऐसे ईश्वरको विघ्नविनाशके अर्थ नमस्कार करता हूं ॥१४॥
सूर्य आदि समस्त ग्रह नक्षत्र और राशियोंके सहित, जिसकी यह जन्मपत्री है उसके संपूर्ण कामनाको देवैं ॥१५॥
जन्म सुख देनेवाली, कुल और संपदाको बढानेवाली एवं पदवी और पूर्वपुण्यको देनेवाली जन्मपत्रिको लिखता हूं ॥१६॥
एकदन्ती, महाबुद्धिमान्, सर्वज्ञ, गणनायक देवता, पार्वतीके पुत्र विनायक सर्व सिद्धि करनेवाले होवें ॥१७॥
ब्रह्मा दीर्घायु करै, विष्णु संपदाको देवे और हर गात्रोंकी रक्षा करैं जिसकी यह जन्मपत्री है ॥१८॥
गणेशजी, सूर्यादिग्रह एवं गोत्रपक्षी और मातृपक्षी ग्रह, जिसकी यह जन्मपत्री है उसका कल्याण करैं ॥१९॥
श्रीसूर्यनारायण समस्त कल्याण करें, चन्द्रमा करें, चन्द्रमा कान्तिको बढावें, मंगल लक्ष्मी देवैं, बुध बुद्धिकी वृद्धि करैं, बृहस्पति दीर्धजीवी करैं, शुक्र साम्राज्य सर्व सुखको देवे, शनैश्वर विजय करैं, राहु सर्वसामग्री वैभवकी वृद्धि करैं और केतु मनोवांछित फल देवैं जिसकी उत्तमपत्री मैं लिखता हूं ॥२०॥
संपूर्ण भावीफल जो होनेवाले हैं जन्मपत्रीरुप दीपकसे प्रकट होंगे जैसे अंधियारी रातमें दीपककें होनेसे घरके सब पदार्थ दिखाई देते हैं ॥२१॥
जो जगतके अर्थ शुभ अशुभ करते हैं, जो संपदाको देते हैं, जो बलिदान होम विधिसे विघ्नोंको नाश करते हैं और जो संभोग, वियोग जीवित करते हैं वे सब देवता और खेचर तथा सूर्य आदि ग्रहगण तुम्हारे निमित्त शांतिको देवें ॥२२॥
मंदराचलको मूलसहित उखाडके गोकुलमें छत्रके समान करनेवाले, महाबली सुररिपुके मस्तकको राहु बनानेवाले, पृथ्वीको तीन पगके बराबर करनेवाले, लीलाकरके बलिराजाको बांधनेवाले, युगपति त्रैलोक्यनाथ हरि युगयुगमें तुम्हारी रक्षा करें ॥२३॥
श्रीसूर्यनारायण सदा पुष्टिको देवै, चंद्रमा संततिको देवै. मंगल भाग्यको बढावै, बुध पुत्रको देवै, सदा शांति और मांगल्यताको करै, बृहस्पति राज्य और सुभगताको करै, शुक्र भूमिपात्रताको करै, राहु केतु सौक्यको देवें, ये संपूर्ण ग्रह तुम्हैं निर्मल कीर्तिको देवैं ॥२४॥
ग्रह राज्यको देते हैं और ग्रहही राज्यको हरलेते हैं एवं संपूर्ण त्रैलोक्य चराचरमें ग्रहही व्याप्त हैं ॥२५॥
उमा, गौरी, शिवा, दुर्गा, भद्रा, भगवती, कुलदेवी और चामुंडा देवी बालककी सदा रक्षा करैं ॥२६॥
निरन्तर मदजल बहानेवाले, भ्रमर ( कुल ) समूहकरके सेवित कपोलवाले, मनके वांछित फलको देनेवाले, कार्यके स्वामी श्रीगणेशजीकी वंदना करता हूं ॥२७॥
श्रीयावनी प्रशस्तिः ।
पश्चिमाभिमुखास्थित एवं अप्रकटमूर्तिसे विद्यमान विश्वके चराचरमें परिवर्तित ( वर्तमान ) दुर्लक्ष्य जिनकी पराक्रमगति और कियेहुए कमोंसे लक्ष्य ऐसे रहमाण तुमको राज्य एवं लक्ष्मीको देवें ॥२८॥