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अध्याय १ - संवत्सरफल

मानसागरी - अध्याय १ - संवत्सरफल

ज्योतिष का मुख्य उद्देश्य दैनिक जीवन की समस्याओं का समाधान करना, आगामी घटनाओं की चेतावनी देना तथा उन घटनाओं का समय निश्चित करने मे व्यक्ति को सहायता प्रदान करना है ।

Jyotisha or Horoscope is a prediction of someone's future based on the relative positions of the planets


प्रभवनाम संवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य अपने जातिकुलके अनुसार धर्मात्मा, विद्यवान्, बडा बलवान्, दुष्ट और कृतविद्य होता है ॥१॥

विभवसंवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य स्त्रीके तुल्य स्वभाववाला, चपल, चोर, धनवान् और परोपकारी होता है ॥२॥

शुक्लसंवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य शुद्ध स्वभाववाला, शांत, सुशीलवान्, परस्त्रीका अभिलाषी, परोपकारी कर्म करनेवाला और निर्धनी होता है ॥३॥

प्रमोदसंवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य कहीं लक्ष्मी, कहीं स्त्री, बंधु, मित्र शत्रुके अर्थ विग्रह करनेवाला, राजासे पृज्य और प्रधान होता है ॥४॥

प्रजापतिसंवत्सरमें जन्म लेनेवाला प्रजाके पालनमें संतुष्ट, दानी, भोगनेवाला, बहुत प्रजावान् और धनके हेतु विदेशमें विख्यात होता है ॥५॥

जिसका अंगिरासंवत्सरमें जन्म होता है वह क्रिया आदि आचारमें, धर्मशास्त्र आगम आदिमें निपुण अतिथि और मित्रका भक्त होता है ॥६॥

जिसका श्रीमुखसंवत्सरमें जन्म होताहै वह धनवान्, देवताका भक्त, धातु-व्यवहारमें निपुण और पाखंडके कर्म करनेवाला होताहै ॥७॥

भावसंवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य सदा तर्क करनेवाला, कार्यको करनेवाला और मछली मांससे प्रीति करनेवाला होताहै ॥८॥

युवासंवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य स्त्रीसे पीडित, जलसे भयवाला एवं व्याधि दुःख आदिसे पीडित और सदा प्रीतिमान् होताहै ॥९॥

धाता संवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य, संपृर्णगुणोंसे पूर्ण, सुंदरशरीर, गुरुभक्त, कारीगरीकी विद्यामें अतिकुशल और सुशील होता है ॥१०॥ ]

ईश्वरसंवत्सरमें जिसका जन्म होताहै वह धनवान्, भोगी, कामी, पशुओंके पालनमें प्रीति करनेवाला और अर्थ धर्मसे युक्त होताहै ॥१०॥

बहुधान्य संवत्सरमें जिसका जन्म होता है वह सदा वेद शास्त्रमें रत रहनेवाला, गांधर्व ( गायनके ) कलाको जाननेवाला, सुरापान करनेपर भी अति गर्वी न होनेवाला होता है ॥११॥

प्रमाथी संवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य परस्त्रीका अभिलाषी, परद्रव्यमें रत रहनेवाला, व्यसनी और दूतवादी होता है ॥१२॥

विक्रम संवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य संतोषवान्, व्यसनमें आसक्त, प्रतापी, जितेन्द्रिय, शूर वीर और कृताविद्य होता है ॥१३॥

वृषसंवत्सरमें जिसका जन्म होताहै वह स्थूल उदरवाला, स्थूल गुल्फवाला, अल्प पाणि, कुलापवादी, कुलसेवक, धर्मार्थसे युक्त और बहुत धनहरण करनेवाला होता है ॥१४॥

चित्रभानु संवत्सरमें जिसका जन्म होता है वह तेजवान्, बुद्धिमान्, गर्वी, हीन कर्ममें स्थित न रहनेवाला और सदा देवताकी प्रीतिसे पूजा करनेवाला होता है ॥१५॥

सुभानु संवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य संपूर्ण शुभकार्य तथा मित्रामित्रके फलको पानेवाला और संपूर्ण वस्तुका संग्रह करनेवाला होता है ॥१६॥

तारण संवत्सरमें जिसका जन्म होता है वह सबको प्यारा, सदा सर्वधर्मसे बहिर्मुख रहनेवाला और राजपूजासे प्राप्त धनवाला होता है ॥१७॥

पार्थिव संवत्सरमें जिसका जन्म होता है वह शिव ( कल्याणात्मक ) ब्रह्म ( तप ) के करनेवाला, शुभ सौख्यका दायका कल्याण करके युक्त और धर्मात्मा होता है ॥१८॥

व्ययसंवत्सरमें जिसका जन्म होताहै वह दानी, भोक्ता, जन्मके कर्मकरके प्रधातत्त्व तथा सुखको पानेवाला और बहुधा मित्रोंके समागम करके युक्त होता है ॥१९॥

सर्वजित् संवत्सरमें जन्म लेनेवाला पुरुष संपूर्ण लोकोंको जीतकर विष्णुके धर्ममें परायण और संपूर्ण पुण्यकर्मोंको करनेवाला होता है ॥२०॥

सर्वधारी संवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य सदा मातापिताको प्रिय, गुरुका भक्त, शूर, वीर, शांतस्वभाववाला और प्रतापी होता है ॥२१॥

विरोधी संवत्सरमें जिसका जन्म होता है वह राक्षसी कर्म करनेवाला, मत्स्यमांसको खानेवाला, धर्मबुद्धिमें रत, प्रशस्त और लोकपूजित होताहै ॥२२॥

जिसका जन्म विकृति संवत्सरमें होताहै वह चित्रवादी, नृत्यको जाननेवाला, गांधर्व, अभिन्नसंशय, दानी, मानवान् और भोगी होताहै ॥२३॥

खरसंवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य हिंसा करनेवाला, परद्रव्यमें रत रहनेके निमित्त मित्रता करनेवाला, कुटुम्बका भार संभालनेवाला और उत्साही होताहै ॥२४॥

नंदसंवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य सदाकाल प्रीतियुक्त, गृहमें कल्याण करनेवाला और राजमान्य होता है ॥२५॥

विजयसंवत्सरमें जिसका जन्म होताहै वह कीर्ति, आयु, यश, सौख्य तथा संपूर्ण शुभकर्मोंसे युक्त, युद्धमें शूर वीर और शत्रुसे अतिपुष्ट अर्थात् शत्रुजनोंका नाश करनेवाला होताहै ॥२६॥

जयसंवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य युद्धमें दुर्गमस्थानोंको जीतनेवाला, मित्रामित्रफलको पानेवाला और व्यापारीकर्मसे युक्त होताहै ॥२७॥

मन्मथसंवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य अति कामी, अधिक बुद्धिवाला, तृष्णावान्, बहुत पुरुषोंसे युक्त, निष्ठुर, अधिकभोगवाला और अवि ( पर्वतके समान ) बलवान् होताहै ॥२८॥

दुर्भुखसंवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य पवित्र, शांतस्वभाव, बडा दक्ष, गुणपूजित परोपकार करनेवाला, वादी और दुष्ट स्त्रीकों भी प्रिय होताहै ॥२९॥

हेमलंबीसंवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य मणि, मुक्ता, रत्न और अष्टधातुओंसे युक्त, दान न करनेवाला, कृपण और पूज्य होताहै ॥३०॥

बिलंबीसंवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य सदा आलसी, व्याधि और दुःखोंसे युक्त एवं कुटुम्बका धारण करनेवाला होताहै ॥३१॥

विकारी संवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य रक्तविकारवाला, रक्तनेत्रोंबला, पित्तप्रकृतीवाला वनसे प्रीति करनेवाला और निर्धन होता है ॥३२॥

शार्वरीसंवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य वेदशास्त्रसे प्रीति करनेवाला, देवता ब्राह्मणमें रुचि, भक्तिमान् और शर्करारसका भोगनेवाला होताहै ॥३३॥

प्लवसंवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य निद्रावान् , भोगी, व्यवसायी, यशस्वी और सर्वलोकोंसे पूजित होताहै ॥३४॥

शुभसंवत्सर्में जिसका जन्म होताहै वह कर्मवान्, सुंदर यशवाला, धर्मशील, तप करनेवाला, प्रजापाल और बडा प्रवीण होताहै ॥३५॥

जिसका जन्म शोभनसंवत्सरमें होताहै वह सुंदरचित्तवाला, शांतचित्तवाला, शूर वीर, बहु प्रकारका दानी, न अधिक वृद्ध और न कोई काम उसका पूर्णताको प्राप्त होता है ॥३६॥

अत्यंत क्रोधी, शूर वीर, ज्ञानवान्, औषधिका संग्रह करनेवाला, तथा सर्वत्र दुसरोंका अपवाद ( मिथ्याकलंक ) करनेवाला मनुष्य क्रोधीसंवत्सरमें जन्म लेनेसे होता है ॥३७॥

जिसका जन्म विश्वावसु संवत्सरमें हो वह पुरुष छत्र, ध्वजा, पताका, चामर आदिसे विभूषित जनोमें श्रेष्ठ होता है ॥३८॥

जिसका जन्म पराभव संवत्सरमें हो वह भयसे पीडित तथा शीतसे डरनेवाला कातर ( डरपोक ), अधर्मी, दूसरोंपर चोट पहूँचानेवाला मनुष्य होता है ॥३९॥

जिसका जन्म प्लवंग संवत्सरमें हो वह मनुष्य भयानक चोरीके कर्म करनेवाला पृथ्वीका पालक नरेश्वर और योगाभ्यासमें सदा रत रहता है ॥४०॥

चित्रकर्ताकी समान, सुखी, ब्राह्मणप्रिय, माता - पिताका भक्त, कीलकसंवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य होता है ॥४१॥

शुद्धचित्तवाला, शीलवान्, बुद्धिमान्, प्रतापवाला, इन्द्रियजित्, दीनका भक्त, शुभफल भोगनेवाला, सौम्यसंवत्सरमें उत्पन्न मनुष्य होताहै ॥४२॥

उद्यम करनेवाला, अल्पसंतोषी, धर्मकर्ममें सदा रत रहनेवाला साधारण संवत्सरमें जन्म लेनेसे मनुष्य होता है ॥४३॥

सज्जनोंसे और भाई बंधुओंसे विरोध करनेवाला, क्षणमें क्रोधरहित और क्षणामें हीन और दुर्वार विरोधकृत् संवत्सरमें जन्म होनेसे मनुष्य होता है ॥४४॥

थोडी बुद्धि और क्रियावाला, देशदेश भ्रमण करनेवाला, देवतातीर्थमें नित्यप्रीति रखनेवाला परिधावी संवत्सरमें जन्म लेनेसें मनुष्य होता है ॥४५॥

प्रमादी संवत्सरमें उत्पन्न होनेवाला मनुष्य चन्दन, पुष्प, धूपादिसे नित्य शिवजीकी भक्तिसे पूजा करनेवाला और शौचाचारमें प्रीति रखनेवाला होता है ॥४६॥

आनंदसंवत्सरमें जन्म लेनेवाला मनुष्य सर्वकाल प्रसन्न रहनेवाला सदा अतिथिका सत्कार करनेवाला और सदा स्वजनोंसे धन पानेवाला होता है ॥४७॥

जिसका जन्म राक्षसंवत्सरमें हो वह मनुष्य सदा मछली - मांसका प्रेमी, वाधिकवृत्तिवाला, मदिरा पीनेवाला और पापी होता है ॥४८॥

जिसका जन्म नलसंवत्सरमें हो वह मनुष्य बहुतपुत्रोंवाला और बहुत मित्रोंवाला, धनका लोभ करनेवाला, लडाई झगडेका प्यार करनेवाला तथा हानि शोक एवं दुःखको भोगनेवाला होता है ॥४९॥

जिसका जन्म पिंगलसंवत्सरमें हो वह मनुष्य पित्तकोपप्रकृतिवाला, बहुधा अनेक व्याधियोंसे युक्त और बहुत वाहनों ( सवारियों ) से युक्त होता है ॥५०॥

खेती और वाणिज्य करनेवाला, तेलभांडादिक संग्रह करनेवाला, खरीदने और बेंचनेके कर्मको करनेवाला मनुष्य कालयुक्त संवत्सरमें जन्म लेनेसे होता है ॥५१॥

वेद और शास्त्रके प्रभावको जाननेवाला, सुंदर चित्तवाला, कोमल, सुकुमार, राजाओंसे पूज्य और पंडित सिद्धार्थिसंवत्सरमें उत्पन्न होनेसे मनुष्य होता है ॥५२॥

चोर, चपल, निर्दयी, पराये द्रव्यमें सदा रत रहनेवाला, निंदित काम करनेवाला मनुष्य रुद्रसंवत्सरमें जन्म लेनेसे होता है ॥५३॥

पापबुद्धिमें रत रहनेवाला, पापी और पापहीका आश्रय करनेवाला, बोध ( बौद्ध मतके ) कर्मसे युक्त मनुष्य दुर्मति संवत्सरमें उत्पन्न होनेसे होता है ॥५४॥

गाना, बजाना, शिल्प ( कारीगरी ), मंत्रविद्या, वैद्यविद्या इन सब अंगोंकें गुणको जाननेवाला दुंदुभिसंवत्सरमें उत्पन्न होनेसे मनुष्य होता है ॥५५॥

वातरक्त अथवा कफवातविकारसे युक्त, झूठ बोलनेवाला रुधिरोद्नारी संवत्सरमें उत्पन्न होनेवाला मनुष्य होता है ॥५६॥

देशको त्यागनेवाला, धनको नष्ट करनेवाला, सर्वत्र हानि पानेवाला रखेली विवाहितस्त्रीवाला रक्ताक्षी संवत्सरमें जन्म लेनेसे मनुष्य होता है ॥५७॥

क्रोधवान्, क्रोधका उत्पन्न करनेवाला, सिंहके समान पराक्रम करनेवाला, ब्राह्मण, पराधीन जीविकावाला क्रोधन संवत्सरमें उत्पन्न होनेसे मनुष्य होनेसे मनुष्य होता है ॥५८॥

कुटुंबसे कलह करनेवाला तथा मदिरा वा वेश्यामें सदा रत रहनेवाला धर्म और अधर्मका विचान करनेवाला क्षयसंवत्सरमें उत्पन्न होनेसे मनुष्य होता है ॥५९॥

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Last Updated : January 22, 2014

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