ममता तू न गई मेरे मन तें ॥
पाके केस जनमके साथी, लाज गई लोकनतें ।
तन थाके कर कंपन लागे, ज्योति गई नैननतें ॥१॥
सरवन बचन न सुनत काहुके बल गये सब इंद्रिनतें ।
टूटे दसन बचन नहिं आवत सोभा गई मुखनतें ॥२॥
कफ पित बात कंठपर बैठे सुतहिं बुलावत करतें ।
भाइ-बंधु सब परम पियारे नारि निकारत घरतें ॥३॥
जैसे ससि-मंडल बिच स्याही छुटै न कोटि जतनतें ।
तुलसीदास बलि जाउँ चरनते लोभ पराये धनतें ॥४॥