दीनको दयालु दानि दूसरो न कोऊ ।
जासों दीनता कहौम हौं देखौं दीन सोऊ ॥१॥
सुर नर मुनि असुर नाग साहब तौ घनेरे ।
तौ लौं जौ लौं रावरे न नेकु नयन फेरे ॥२॥
त्रिभुवन तिहुँ काल बिदित बेद बदति चारी ।
आदि अंत मध्य राम साहबी तिहारी ॥३॥
तोहि माँगि माँगनो न माँगनो कहायो ।
सुनि सुबाव सील सुजसु जाचन जन आयो ॥४॥
पाहन, पसु, बिटप, बिहँग अपने करि लीन्हें ।
महाराज दसरथके ! रंक राय कीन्हें ॥५॥
तू गरीबको निवाज, हौं गरीब तेरो ।
बारक कहिये कृपालु ! तुलसिदास मेरो ॥६॥