हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|तुलसीदास भजन|भजन संग्रह १|
कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंग...

भजन - कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंग...

तुलसीदास हिन्दीके महान कवी थे, जिन्होंने रामचरितमानस जैसी महान रचना की ।


कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो ।

श्रीरघुनाथ-कृपालु-कृपातें संत स्वभाव गहौंगो ॥

जथा लाभ संतोष सदा, काहूसों कछु न चहौंगो ।

परहित-निरत निरंतर मन क्रम बचन नेम निबहोंगो ॥

परुष-बचन अति दुसह स्त्रवन सुनि तेहि पावक न दहौंगो ।

बिगत-मान सम सीतल मन पर-गुन, नहिं दोष कहौंगो ।

परिहरि देह जनित चिन्ता, दुख-सुख समबुद्धि सहौंगो ।

तुलसीदास प्रभु यहि पथ रहि, अबिचल हरि-भगति लहौंगो ।

N/A

References : N/A
Last Updated : December 15, 2007

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP