है प्रभु ! मेरोई सब दोसु ।
सीलसिंधु, कृपालु नाथ अनाथ, आरत-पोसु ॥
बेष बचन बिराग मन अघ अवगुननिको कोसु ।
राम ! प्रीति प्रतीति पोली, कपट करतब ठोसु ॥
राग-रंग कुसंग हो सों साधु-संगति रोसु ।
चहत केहरि-जसहिं सेइ सृगाल ज्यों खरगोसु ॥
संभु सिखवन रसन हूँ नित राम-नामहिं घोसु ।
दंभहू कलिनाम कुंभज सोच सागर सोसु ॥
मोद-मंगल-मूल अति अनुकूल निज निरजोसु ।
रामनाम प्रभाव सुनि तुलसीहु परम परितोसु ॥