मैं केहि कहौ बिपति अति भारी । श्रीरघुबीर धीर हितकारी ॥
मम ह्रदय भवन प्रभु तोरा । तहँ बसे आइ बहु चोरा ॥
अति कठिन करहिं बर जोरा । मानहिं नहिं बिनय निहोरा ॥
तम, मोह, लोभ अहँकारा । मद, क्रोध, बोध रिपु मारा ॥
अति करहिं उपद्रव नाथा । मरदहिं मोहि जानि अनाथा ॥
मैं एक, अमित बटपारा । कोउ सुनै न मोर पुकारा ॥
भागेहु नहिं नाथ ! उबारा । रघुनायक करहु सँभारा ॥
कह तुलसिदास सुनु रामा । लूटहिं तसकर तव धामा ॥
चिंता यह मोहिं अपारा । अपजस नहिं होइ तुम्हारा ॥