तऊ न मेरे अघ अवगुन गनिहैं ।
जौ जमराज काज सब परिहरि इहै ख्याल उर अनिहैं ॥१॥
चलिहैं छूटि, पुंज पापिनके असमंजस जिय जनिहैं ।
देखि खलल अधिकार प्रभूसों, मेरी भूरि भलाई भनिहैं ॥२॥
हँसि करिहैं परतीत भक्तकी भक्त सिरोमनि मनिहैं ।
ज्यों त्यों तुलसीदास कोसलपति, अपनायहि पर बनिहैं ॥३॥