कैसे देउँ नाथहिं खोरो ।
काम-लोलुप भ्रमत मन हरि ! भगति परिहरि तोरि ॥
बहुत प्रीति पुजाइबे पर, पूजिबे पर थोरि ।
देत सिख सिखयो न मानत, मूढ़ता अस मोरि ॥
किये सहित सनेह जे अघ ह्रदय राखेचोरि ।
रंग-बस किये सुभ सुनाये सकल लोक निहोरि ॥
करौं जो कछु धरौं सचि पचि सुकृत सिला बटोरि ।
पैठि उर बसबस दयानिधि ! दंभ लेत अजोरि ॥
लोभ मनहिं नचाव कपि ज्यों गरे आसा-डोरि ।
बात कहौं बनाइ बुध ज्यों, बर बिराग निचोरि ॥
एतेहुँ पर तुम्हरो कहावत, लाज अँचई घोरि ।
निलजता पर रीझि रघुबर देहु तुलसीहिं छोरि ॥