और काहि माँगिये, को मागिबो निवारै ।
अभिमत दातार कौन, दुख-दरिद्र दारै ॥
धरम धाम राम काम-कोटि-रूप रूरो ।
साहब सब बिधि सुजान, दान खड्ग सूरो ।
सुखमय दिन द्वै निसान सबके द्वार बाजै ।
कुसमय दसरथके दानि ! तैं गरीब निवाजै ॥
सेवा बिनु गुन बिहीन दीनता सुनाये ।
जे जे तैं निहाल किये फूले फिरत पाये ॥
तुलसीदास जाचक-रुचि जानि दान दीजै ।
रामचंद्र चंद तू, चकोर मोहि कीजै ॥