केहू भाँति कृपासिंधु मेरी ओर हेरिये ।
मोको और ठौर न सुटेक एक तेरिये ॥
सहस सिलातें अति जड़ मति भई है ।
कासो कहौं, कौन गति पाहनहिं दई है ॥
पद-राग-जाग चहौं कौसिक ज्यों कियो हौं ।
कलि-मल-खल देखि भारी भीति भियो हौं ॥
करम-कपीस बालि बली-त्रास-त्रस्यो हौं ।
चाहत अनाथ नाथ तेरी बाँह बस्यो हौं ॥
महा मोह रावन बिभीषन ज्यों हयो हौं ।
त्राहि तुलसीस ! त्राहिं तिहूँ ताप तयो हौं ॥