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मेरो मन हरिजू ! हठ न तजै...

भजन - मेरो मन हरिजू ! हठ न तजै...

तुलसीदास हिन्दीके महान कवी थे, जिन्होंने रामचरितमानस जैसी महान रचना की ।


मेरो मन हरिजू ! हठ न तजै ।

निसिदिन नाथ देउँ सिख बहु बिधि, करत सुभाउ निजै ॥१॥

ज्यों जुबती अनुभवति प्रसव अति दारुन दुख उपजै ।

ह्वै अनुकूल बिसारि सूल सठ, पुनि खल पतिहिं भजै ॥२॥

लोलुप भ्रमत गृहपसु-ज्यों जहॅं-तहॅं सिर पदत्रान बजै ।

तदपि अधम बिचरत तेहि मारग, कबहुँ न मूढ़ लजै ॥३॥

हौं रारयौ करि जतन बिबिध बिधि, अतिसै प्रबल अजै ।

तुलसिदास बस होइ तबहिं जब प्रेरक प्रभु बरजै ॥४॥

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Last Updated : December 14, 2007

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