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काय सोचत बारोबारा । हरका ...

कबीर के दोहे - काय सोचत बारोबारा । हरका ...

कबीर के दोहे

हिंदी साहित्य में कबीर का व्यक्तित्व अनुपम है।
Kabir mostly known as "Weaver saint of Varanasi".


काय सोचत बारोबारा । हरका नाम लेले गवांरा ॥ध्रु०॥

कछु पढा और कछु बाचा कछु सुना वेद पुरान ॥ हरका०॥१॥

जो पढे बाचे सूध होई उनकू सहेज मिले सांईरे ॥ हरका०॥२॥

पांच चोर मिल घर भाज्या घर लुटत देन उर संजोरे ॥ हरका०॥३॥

जिस घरपति भक्कम होई सो घर लूट न सके कोईरे ॥ हरका०॥४॥

ये तो बेली बेलि जिसे कहीये बांकी बेलत सिचन रहीये ॥ हरका०॥५॥

जब पानो फुलो फल लागा जब जनन मरन गये भागा ॥ हरका०॥६॥

जब दरपन मांजत रहिये तव मुखरा देखत पाईये ॥ हरका०॥७॥

जब दरपन चढी काठही पे तब दरशन किये न जाईये ॥ हरका०॥८॥

कछु किया न कछु कीजिये सांई आगु लेखा लीजिये ॥ हरका०॥९॥

जाकी करनिमे कुछ खुटे वाकूं पकर पकर जम लुटे ॥ हरका०॥१०॥

एक बेल हमारा खोरा बेल तेरा भाव भरा ॥ हरका०॥११॥

मैं बारबार पस्तानी तले किचर चोर उधर पानी ॥ हरका०॥१२॥

जाको जम सरिरको बेली सो क्यौं सोवे निंद बनेरा ॥ हरका०॥१३॥

जब पार उतरनहारे चाहिये तबकेवटसे मिल रहिये ॥ हरका०॥१४॥

जब उतरेगा ओह पारा तब हम तुम कौन संसारा ॥ हरका०॥१५॥

अंधारमें दीपक चाहिये तब वसत गोचर पायीये ॥ हरका०॥१६॥

जब वसत अगोचर पाई तब सेजे सोत समाई ॥ हरका०॥१७॥

बाजीघरमें बाजा बजाये सारी आलम तमाशेकू आये ॥ हरका०॥१८॥

बाजीघरमें बाजा जो खोला सो आपही आकेला ॥ हरका०॥१९॥

दास कबीरने जोग जाना जोग आना जोग माना ॥ हरका०॥२०॥

दास कबीर हरद्वार रीझे मुरख क्या जोग बुझे ॥२१॥

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Last Updated : January 07, 2008

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