कंचन नारी त्यजकर सुखसे बैठे आराम ।
दिल दरगा भरपुर भरा व्हां बैठे राजाराम ॥१॥
काहेकू सोस करे काहेकू जंगल फिरे ॥ध्रु०॥
दो दिनकी जानी दिवाने पलट जायगी खिनमों ।
रामनामसे कुई नहीं बडा देखे आपने मनमों ॥२॥
जपी तपी और बडे बडे जल गये एक खिनमों ।
काहांसे आया काहांसे जाना सुद रखो तनमों ॥३॥
भरा पर मायाका बजोर कोन किसीका साती ।
कहत कबीर सुनो भाई साधु आखर जंगलकी बस्ती ॥४॥