चौरासी आसन बांधके बैठे एक ध्यानके ।
तेरा मन फिरे चौ दिस तो क्या मिले रामके ॥१॥
ज्याके घाट सुघाट । अभीरस पिवे ।
पिबे कोई संत सुजान । जुग जुग जिवे ॥२॥
छापा तिलक बनायके । गोविंद गुण गावे ।
रहे कहनी कछु नहीं । भक्तिके पावे ॥३॥
नदी किनारे बग चुगे । मी तो जाने हंस है ।
हंस जानके किये संग । मुहमें मच्छी है ॥४॥
जिसके संगतसे दूध बिघाडे । ताक क्या किये ।
माही गरथ नहीरे लगार । वाकूं ढोली दिये ॥५॥
हंस चुगे निज नाम । और नहीं भाव ।
मंगल गावे दास कबीर । बहार और नहीं आव ॥६॥