पंडत जमका करो बखान । ज्या दिन नहीं धरती आसमान ॥ध्रु०॥
ज्या दिन धरन गगन सुलपाणी । नहीं सुमेरे मंडना ।
एकविस सागर पसारा नहीं । नहीं रवि शशि भाना ॥१॥
ज्या दिन जोग जुगुत नहीं । पुजा नहीं सुमरन नहीं ध्याना ।
आडसट तीरथ ज्या दिन नहीं । नहीं सुबेद कुराना ॥२॥
गुणी गंधर्व मुनी देवता । नहीं बैकुंठ मैदाना ।
दश अवतार ज्या दिन नहीं । नहीं तीन लोक मंडाना ॥३॥
ज्योती स्वरूप निरंजन नहीं । नहीं सोत्रिगुण तपाना ।
यौही साहेब शेष भयी प्रगट भये । सोही पुरुष पुराना ॥४॥
कहे कबीर ताहेकूं खोजो पावो पद निरबाना ।
नही तो भूल भटकत मत फिरयो छांडो जुगका जाना ॥५॥