बह्मन पुरान वाचे दाम लिये सो पाजी है ।
कुरान किताब काजी पढे ओही दगाबाजी है ॥१॥
ब्रह्मन बरत नेम धरता आस्नान संध्या उनोका दश नेम है ।
पैसे खातर सबही छांडे जंतर मंतर जपतां है ॥२॥
काजी किताब सुनावे बांगी निमाज पुकारे है ।
जद भिस्तके म्याने खस्त करे । कैसा मौला मिलता है ॥३॥
दोनो झूटे दोनो पाजी गोता खाते है ।
कहे कबीर सुनो भाई साधु फिरफिर जनम । आते है ॥४॥