भक्तिरसायन बडाजी होवे भवरोगनका झाडा ॥ध्रु०॥
श्रवण परिक्षिती कीर्तन नारद स्मरण करे प्रल्हादा ।
पगसेवन लछीमासें हुवा हरी चरन चित जडा ॥१॥
अरचन किया पृथुराजन वंदन अक्रूर किया ।
दास्य कियासो हनुमानजीनें निशिदिनीं आगे खडा ॥२॥
सख्य भक्ति अरजुननें पाई बली निवेदन किया ।
तन मन धनही सब दे डारा हात जोडकर खडा ॥३॥
भक्ति करोगा जे भवरोगी मुक्ति उनकी दासी ।
पोथी पुरान कुरान देखे दूजा मार्ग नहीं बडा ॥४॥
भक्ति बिन कोई तरन न जावे सब शास्तरमों देखा ।
दुजा उपाव नहीं जानके कबीर भक्ती नहीं छोडा ॥५॥