ये तो जोग न पायाबे तनका भोग मचायाबे ॥ध्रु०॥
कान फाडकर नाथ कहत है अनाथ घरघर फिरे ।
धागा भरके कंथा पहिरे आंगा बभूत भरपूरे ॥१॥
मुदरा लेके वैष्णव हुवा गांड लंगोट लगाया ।
बालाजी बालाजी कहतो बाले सिर झुलाया ॥२॥
नानक पंथी मुंड मुंडाया सोटा बाजे कैसा ।
जो ना देवे पैसा उसके माकूं चोदे भयिसा ॥३॥
जटा मुकुट है नंगा नख जो वागा सरिखा पाला ।
अन्न न खावे ले सवा रुपिया क्या मुर्गीका साला ॥४॥
दस नामोकी बडी बढाई सावकारीका धंदा ।
दाल पुरी घी शक्कर खावे हुवा बांदिका बंदा ॥५॥
संतत संपत सुखके छपावे रामभजन का ठारा ।
माया लोभी झुटे भडवे कोई न पावे थारा ॥६॥
भूतदया है शांति सबनकी भ्रांति निकालनवाला ।
कहत कबीरा सुन भाई साधु ओही हमारा अल्ला ॥७॥