हो मन मूरख बावरा तेरी सदा न देही ।
क्यौं न संभालो निज नामकूं हरिपर सनेही ॥ध्रु०॥
ये माया कौनकी भई । कौनके संग लागी ॥
गरज गरज सब उठ गये । हजु चेत अभागी ॥१॥
सौल स्वजनके मध्यमें । चलती छत्रकी छाई ॥
सौ दुर्योधन मिल गये । माठीके माई ॥२॥
कंचनकी लंका बनी । जहा मनोहर रानी ॥
बैठ कराई ये साहेबी । छीन माही बिरानी ॥३॥
कहे कबीर पुकारके । सुमन सरज न हार ॥
महा बलीया सो हो गया । वांका अंत न पार ॥४॥