रामनाम तूं भजले प्यारे कायकूं मगरुरी करता है ।
कची मिटिका बंगला तेरा पाव पलखमें गिरता है ॥ध्रु०॥
बम्मन होकर पोथी बाचे स्नान तरपन करता है ।
सबकाल सुचित रहत है वो क्या साहेब मिलता है ॥१॥
जोगी होकर जटा बढावे हालमन्तमें रहाता है ।
दोनो हात सिरपर धरके वो क्या साहेब मिलता है ॥२॥
मानभाव पहने काले कपडे दाढी मिशी मुंडता है ।
उलट लकडी हातमें पकडी वो क्या साहेब मिलता है ॥३॥
मुल्ला होकर बांग पुकारे वो क्या साहेब बहिरा है ।
मुंगिके पावमें घुंगर बाजे ओबी अल्ला सुनता है ॥४॥
जंगम होकर लिंग बांधे घरघर फेरी फिरता है ।
शंख बजाकर भिछा मांगे वो क्या साहेब मिलता है ॥५॥
कहत कबीर सुन भाई साधु मनकी माला जपता है ।
जो भाव भगवतसे ध्यान धरत है उनकु साहेब मिलता है ॥६॥