भारद्वाज n. उपनिषदों में निर्दिष्ट कई आचार्यो का सामुहिक नाम । बृहदारण्यक उपनिषद में इन्हें निम्न लिखित आचार्यो के शिष्य के रुप में निर्दिष्ट किया हैः
भारद्वाज II. n. ऋग्वेद में निर्दिष्ट एक पैतृक नाम, जो भरत का पुत्र अथवा वंशज इस अर्थ इसे प्रयुक्त हुआ है । ऋग्वेद निम्नलिखित सूक्तद्रष्टाओं का पैतृक नाम ‘भारद्वाज’ बताया गया हैः---ऋजिश्वन्
[ऋ.६.४९] , गर्ग
[ऋ.६.४७] , गर्द्दभीभीविपीत, नर
[ऋ.६.३५] , पायु
[ऋ.६.७५] , वसु
[ऋ.९.८०] , वाह्रेय, शाश, शिरिंबिठ
[ऋ.१०. १५५] , शुनहोत्र
[ऋ.६.३३] , शूष वाह्रेय
[वं.ब्रा.२] , सत्यवाह, सप्रतः सुकेशिन्
[प्र. उ.१.१] ; सुहोत्र
[ऋ.६.३१] ।
भारद्वाज III. n. एक सामवेदी श्रुतर्षि ।
भारद्वाज IV. n. अंगिरस् गोत्र का एक मंत्रकार एवं गोत्रकार ।
भारद्वाज IX. n. एक व्याकरणकार । सामवेद के ‘ऋकतंत्रप्रातिशाख्य’ के अनुसार व्याकरणशास्त्र का निर्माण सर्वप्रथम ब्रह्मां ने किया एवं उस शास्त्र की शिक्षा ब्रह्मा ने बृहस्पति को, बृहस्पति ने इंद्र को, एवं इंद्र ने भारद्वाज को दी । आगे चल कर व्याकरण का यही ज्ञान भारद्वाज ने अपने शिष्यों को प्रदान किया । पाणिनि ने आचार्य भारद्वाज के व्याकरणविषयक मतों का उल्लेख किया है
[पा.सू.७.२.६३] । पतञ्जलि ने मी ‘भारद्वजीय व्याकरण’ से संबंधित कई वार्तिकों का निर्देश किया है
[महा.१.७३, १३६, २०१] । ऋक्प्राप्तिशाख्य एवं तैत्तिरीय प्रातिशाख्य में भी, भारद्वाज के व्याकरण विषयक मतों का उल्लेख प्राप्त है, जिससे प्रतीत होता है कि, आचार्य भारद्वज ने ‘ऐंद्र व्याकरण’ की परंपरा को आगे चलाया । आगे चल कर, यही व्याकरण पाणिनीय व्याकरण में अंतर्भूत हुआ ।
भारद्वाज V. n. एक ऋषिक । वायु के अनुसार, ‘ऋषिक’ शब्द का अर्थ ऋषि का पुत्र, अथवा सत्यमार्ग से चलनेवाला आदर्श पुरुष, ऐसा दिया गया है
[वायु.५९.९२-९४] । मत्स्य एवं ब्रह्मांड में, इसके नाम के लिए ‘भरद्वाज’ पाठभेद प्राप्त है
[मत्स्य.१४५.९५-९७] ;
[ब्रह्मांड.२.३२.१०१-१०३] ।
भारद्वाज VI. n. वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ।
भारद्वाज VII. n. एक श्रौतसूत्रकार, जिसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ उपलब्ध हैः---१. भारद्वाज प्रयोग, २. भारद्वाज शिक्षा (कृष्णयजुर्वेद तैत्तिरीय शाखा); ३. भारद्वाज संहिता; ४. भारद्वाज श्रौतसूत्र (कृष्ण यजुर्वेद); ५. वृत्तिसार (C.C).
भारद्वाज VIII. n. एक ऋषि, जिसने द्युमत्सेन राजा को आश्वासन दिया था, ‘तुम्हारा पुत्र एवं सावित्री का पति सत्यवान् पुनः जीवित होगा’
[म.व.२८२.१६] ।