रथीतर n. (सू. इ.) एक राजा. जो मनु वैवस्वतकुलोत्पन्न नाभागवंशीय पृषदश्व राजा का पुत्र था । नाभाग से ले कर रथीतर तक का वंशक्रम वायु में निम्नप्रकार प्राप्त है
रथीतर (ब्राह्मण) n. इसे कुल दो पुत्र थे, जो जन्म से क्षत्रिय हो कर भी आंगिरसवंशीय ब्राह्मणों में शामिल हो गयें । इसी कारण रथीतर वंश के लोग रथीतर गोत्र के क्षत्रिय ब्राह्मण बन गये
[ब्रह्मांड. ३.६३.५-७] , एवं उनका निर्देश आंगिरस कह कर किये जाने लगा
[मत्स्य. १९६.३८] । रथीतर ब्राह्मण कौनसे समय आंगिरस वंश में शामिल हुये यह कहना मुष्किल है. किन्तु बाद के पौराणिक साहित्य में उनका निर्देश प्राय: अप्राप्य है । रथीतर का निर्देश अंगिरस कुल का गोत्रकार अप्राप्य है । रथीतर का निर्दॆश अंगिरस कुल का गोत्रकार एवं प्रवर नाम से किया गया है । रथीतरों की ब्रह्मक्षत्रिय बनने की यही कथा भागवत में विपरीत रूप में दी गयी है, जिसके अनुसार, रथीतर राजा को पुत्र न होने के कारण, इसने अंगिरस ऋषि से संतति उत्पन्न करायी । रथीतर राजा की यही संतान आगे चल कर रथीतर ब्राह्मण नाम से प्रसिद्ध हुयीं
[भा. ९.६.३] ।
रथीतर (ब्राह्मण) II. n. बौधायन श्रौतसूत्र में निर्दिष्ट एक आचार्य
[बौ. श्रौ. २२.११] ;
[बृहद्दे. १.२६, ३.४०] ।
रथीतर (शाकपूर्ण) n. एक आचार्य, जो विष्णु के अनुसार व्यास की ऋकशिष्यपरंपरा में से सोंति नामक आचार्य का शिष्य था । वायु एवं ब्रह्मांड में इसे सत्यश्री का शिष्य कहा गया है । विष्णु में इसे ‘शाकपूर्ण’ एवं ब्रह्मांड में ‘शाकपूणि’ पाठ ही सर्वाधिक स्वीकरणीय है । यह ऋग्वेद के तीन प्रमुख शाखाप्रवर्तक आचार्यों में से एक माना जाता है । ऋग्वेद के अन्य दो शाखाप्रवर्तक आचार्यों के नाम देवमित्र शाकल्य एवं बाष्कलि भारद्वाज थे । इसने ऋग्वेद की तीन संहिताओं की एवं निरुक्त की रचना की । इसके निम्नलिखित चार शिष्य थे