शांखायन n. ऋग्वेद का एक अद्वितीय शाखाप्रवर्तक, आचार्य, जो स्वयं के शाखान्तर्गत ‘संहिता’, ‘ब्राह्मण’, ‘आरण्यक’, ‘उपनिषद’ श्रौत्रसूत्र, गृह्यसूत्र आदि ग्रंथों का रचयिता माना जाता है । कुषीतक ऋषि का पुत्र होने के कारण, इसके द्वारा विरचित समस्त वैदिक साहित्य ‘कौपीतकि’ अथवा ‘शांखायन’ नाम से सुविख्यात है । टीकाकार आनतीय के अनुसार, इसे ‘सुयज्ञ’ नामांतर भी प्राप्त था
[सां. गृ. ४.१०, ६.१०] । ‘शांखायन आरण्यक’ में भी इसका निर्देश प्राप्त है
[शां. आ. १५.१] ।
शांखायन n. व्यास की ऋक्शिष्यपरंपरान्तर्गत पाँच प्रमुख शाखाएँ मानी जाती थीं, जिनकी नामावलि निम्नप्रकार हैः-- १. शाकल २. बाष्कल ३. आश्र्वलायन ५. शांखायन ६. माण्डुकेय। इन पाँच शाखाओं में से शांखायन शाखा का प्रणयिता यह माना जाता है, जिसकी शांखायन, कौषीतकि आदि विभिन्न उपशाखाएँ थीं। इस शाखा में प्रचलित ‘ऋग्वेद संहिता’ प्रायः सर्वत्र शाकल शाखांतर्गत ऋक्संहिता से मिलती जुलती थीं। वर्तमानकाल में प्राप्त ऋग्वेदसंहिता शाकल शाखा की मानी जाती हे।
शांखायन n. ऋग्वेदसंहिता के दो ब्राह्मण ग्रंथ माने जाते हैः---१. ऐतरेय; २. शांखायन अथवा कौषीतकि। ‘कौषीतकि ब्राह्मण में’ कुल ३० अध्याय है, एवं यज्ञ की श्रेष्ठता प्रतिपादन करना, एवं उसकी शास्त्रीय व्याख्या करना इस ग्रंथ का प्रमुख उद्देश्य है । यद्यपि ऐतरेय एवं कौषीतकि ब्राह्मण एक ही ऋग्वेद के हैं, फिर भी, विषय प्रतिपादन के दृष्टि से ये दोनों ग्रन्थ काफ़ी विभिन्न हैं। विषयप्रतिपादन के स्पष्टता के दृष्टि से ‘कौषीतकि ब्राह्मण’ ऐतरेय ब्राह्मण के कतिपय श्रेष्ठ प्रतीत होता हे। इस ब्राह्मण में इसका निर्देश ‘कौषीतकि’ एवं ‘कौषीतक’ एवं ‘कौषीतक’ इन दोनों नाम से प्राप्त है ।
शांखायन n. यद्यपि आरण्यक ग्रंथों की संख्या अनेक बतायी गयी है, फिर भी इनमें से केवल आठ ही आरण्यक ग्रन्थ आज उपलब्ध हैं, जिनकी नामावलि निम्न प्रकार हैः---१. ऐतरेय; २. शांखायन; ३. तैत्तिरीय. ४. माध्यंदिन; ५. बृहदारण्यक; ६. जैमिनीयोपनिषदारण्यक ७. छांदोग्यारण्यक। इनमें से ‘कौषीतकि आरण्यक’ में ‘कौषीतक ब्राह्मण’ का ही कई भाग पुनरध्दृत किया गया है, जिनके पंद्रह अध्याय हैं। सायण के अनुसार अरण्यों में पढ़ायें जाने के कारण इन ग्रन्थों को ‘आरण्यक’ नाम प्राप्त हुआ। वनवासी वानप्रस्थियों को यज्ञयागादि कर्मों की दीक्षा देना इन ग्रन्थों का प्रमुख उद्देश्य है । जिस प्रकार गृहस्थाश्रम के यज्ञादि कर्मों का वर्णन ‘ब्राह्मण’ ग्रंन्थों में प्राप्त है, इसी प्रकार वानप्रस्थाश्रम के यज्ञादि विधियों का वर्णन आरण्यक ग्रंथों में प्रतिपादित किया है । उनमें कर्मकांड के साथ, धर्म की अध्यात्मिक व्याख्या भी दी गयी है, एवं इस प्रकार, ज्ञानमार्ग एवं कर्ममार्ग का समन्वय किया गया है । ‘ऐतरेय’ एवं ‘कौषीतकि’ दोनों ग्रंथों के आद्य भाष्यकार सायण एवं शंकराचार्य माने जाते हैं। शांकरभाष्य के सुप्रसिद्ध टीकाकारों में आनंदगिरि, आनंदतीर्थ (आनंदज्ञान), नारायणेंन्द्र सरस्वती एवं कृष्णदास प्रमुख माने जाते है ।
शांखायन n. यह ग्रंथ उपनिषद ग्रंथों में काफ़ी प्राचीन माना जाता है । इस ग्रंथ में ‘कौषीतकि आरण्यक’ का ही तीसरा एवं छठा अध्याय एकत्रित किया गया है ।
शांखायन n. वैदिक संहिताओं में वर्णित यज्ञयागादि विधियों का सार संकलित करनेवाले ग्रंथों को ‘श्रौतसूत्र’ कहा जाता है, जिनमें वेदों में प्रतिपादित चौदह यज्ञों की जानकारी प्राप्त है । प्राचीन श्रौतसूत्रों में से बारह प्रमुख श्रौतसूत्र आज प्राप्त हैं, जिनकी नामावलि निम्नप्रकार हैः---१. शांखायन श्रोतसूत्र; २. आश्र्वलायन श्रौतसूत्र; ३. मानव श्रौतसूत्र; ४. बौधायन श्रौतसूत्र; ५. आपस्तंब श्रौतसूत्र; ६. हिरण्यकेशी श्रौतसूत्र; ७. कात्यायन श्रौतसूत्र, ८. लाट्यायन श्रौतसूत्र; ९. द्राह्यायण श्रौतसूत्र; १०. जैमिनीय श्रौतसूत्र; ११. वैतान श्रौतसूत्र; १२. वाराह श्रौतसूत्र। शांखायन श्रौतसूत्र के कुल अठारह अध्याय है, एवं उसके अनेक उद्धरण शांखायन ब्राह्मण से मिलते जुलते हैं। इस ग्रंथ के सत्रहवाँ एवं अठरहवाँ अध्याय ‘कौषीतकि आरण्यक’ के पहले एवं दूसरे अध्याय से उध्दृत किये गये है । उस श्रौतसूत्र में शौनक, जातूकर्ण्य, पैंग्य, आरुणि आदि आचार्यों का निर्देश प्राप्त है । एक सर्पसत्र का निर्देश भी वहाँ किया गया है, जो संभवतः जनमेजय के द्वारा किये गये सर्पसत्र का होगा
[सां. श्रौ. १३.२३.८] ।
शांखायन n. शांखायन का एक गृह्यसूत्र भी प्राप्त है, जिसमें पितृयज्ञ, आग्रहायणी यज्ञ आदिसात गृह्ययज्ञों की, एवं देवयज्ञ, भूतयज्ञ, आदि पाँच महायज्ञों की जानकारी दी गयी है । उपलब्ध गृह्यसूत्रों में ‘शांखायन गृह्यसूत्र’ प्रमुख माना जाता है । उपलब्ध गृह्यसूत्रों की नामावलि निम्न प्रकार हैः---१. शांखायन गृह्यसूत्र; २. आश्र्वलायन गृह्यसूत्र; ३. मानव गृह्यसूत्र; ४. बौधायन गृह्यसूत्र; ५. आपस्तंब गृह्यसूत्र; ६. हिरण्यकेशी गृह्यसूत्र; ७. भारद्वाज गृह्यसूत्र; ८. पारस्कर गृह्यसूत्र; ९. द्राह्यायण गृह्यसूत्र; १०. गोभिल गृह्यसूत्र; ११. खादिर गृह्यसूत्र; १२. कौशिक गृह्यसूत्र।
शांखायन n. ऐतरेय ब्राह्मण की रचयिता महिदास ऐतरेय, शांखायन का पूर्ववर्तीं आचार्य माना जाता है । कई अभ्यासकों के अनुसार, ऐतरेय ब्राह्मण ग्रन्थ का कर्तृत्त्व भी महीदास ऐतरेय
[ऐ. ब्रा. १-६ पंचिका] , एवं शांखायन तथा आश्र्वलायन
[ऐ. ब्रा. ७-८ पंचिक] में विभाजित किया जाता है । इस दृष्टि से ऋग्वेदीय शाखाप्रवर्तक आचार्यों की परंपरा निम्नप्रकार बतायी जाती हैः---महीदास ऐतरेय-शांखायन-आश्र्वलायन। शांखायन के ग्रंथों में सुमन्तु, जैमिनि, वैशंपायन, पैल आदि पूर्वाचार्यों का निर्देश प्राप्त है ।