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शौनक

   { śaunakḥ, śaunaka }
Script: Devanagari

शौनक     

Puranic Encyclopaedia  | English  English
ŚAUNAKA I   
1) General.
A renowned ācārya. He is believed to be the author of the famous works--“Ṛgveda Anukramaṇī”, “Āraṇyakam”, “Ṛkprātiśākhya”, etc. The famous Āśvalāyanācārya was Śaunaka's disciple. Ācāryas like Kātyāyana, Patañjali and Vyāsa belonged to his class. Śaunaka's real name was “Gṛtsamada”. It was because he was the son of Śunaka that he got the name “Śaunaka”.
2) Birth.
Śaunahotra, the son of the sage Śunahotra, once performed a yāga. Indra attended that yāga. At that time Śaunahotra rescued Indra from an attack of the Asuras. Indra who was pleased at this, blessed Śaunahotra that he would be born in his next birth in the Bhṛgu family under the name “Śaunaka”.
3) Genealogy
In [Vāyu Purāṇa] his genealogy is given in two forms. i) Ruru (Pramadvarā)-Śunaka-Śaunaka-Ugraśravas ii) Dharmavṛddha-- Śunahotra-- Gṛtsamada- - Śunaka- -Śaunaka. [Vāyu Purāṇa, 92, 26] .
4) Important works.
Śaunaka is believed to be the author of numerous works. The most important of them are given below:--
(1) Ṛkprātiśākhya
(2) Ṛgvedacchandānukramaṇī
(3) Ṛgvedarṣyanukramaṇī
(4) Ṛgveda Anuvākānukramaṇī
(5) Ṛgvedasūktānukramaṇī
(6) Ṛgvedakathānu- kramaṇī
(7) Ṛgvedapādavidhāna
(8) Bṛhaddevatā
(9) Śaunakasmṛti
(10) Caraṇavyūha and
(11) Ṛgvidhāna. [Matsya Purāṇa, Chapter 252] mentions that Śaunaka had written a work on the science of architecture.
5) Disciples.
The chief disciple of Śaunaka was Āśvalāyana. Once Āśvalāyana wrote and dedicated to his Guru (master) two treatises entitled “Gṛhyasūtra” and “Śrautasūtra” to please him. After reading it, Śaunaka destroyed his own work on “Śrautaśāstra”. Āśvalāyana wrote his treatise after having studied the ten works of Śaunaka on Ṛgveda. Kātyāyana, the disciple of Āśvalāyana later received the ten books written by Śaunaka and the three books written by Āśvalāyana. Kātyāyana gave his disciple Patañjali, the two works, “Yajurvedakalpasūtra” and “Sāmaveda Upagrantha” which were written by himself. From this we may infer that the series of Śaunaka's disciples was as follows:--Śaunaka--Āśvalāyana-- Kātyāyana--Patañjali--Vyāsa.
ŚAUNAKA II   A Brāhmaṇa who went to the forest with Yudhiṣṭhira. [M.B. Vana Parva, Chapter 2] .

शौनक     

हिन्दी (hindi) WN | Hindi  Hindi
noun  एक बहुत ही विद्वान ऋषि जो सभी शास्त्रों में पारंगत थे   Ex. शौनक का वर्णन हरिवंश पुराण में भी है ।
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
शौनक ऋषि
Wordnet:
benশৌনক ঋষি
gujશૌનક
kasشونَک , شونَک ریش
kokशौनक
marशौनक
oriଶୌନକ ଋଷି
panਸ਼ੌਨਕ
sanशौनकः
urdشونک , شونک رشی

शौनक     

शौनक n.  एक शाखाप्रवर्तक आचार्य, जो विष्णु, वायु एवं ब्रह्मांड के अनुसार, व्यास की अथर्वन्शिष्यपरंपरा में से पथ्य नामक आचार्य का शिष्य था (व्यास एवं पाणिनि देखिये) । इसे भृगुकुल का मंत्रकार भी कहा गया है ।
शौनक (कापेय) n.  एक राजा, जो अभिप्रतारिन् काक्षसेनि राजा का समकालीन था । इसके पुरोहित का नाम शौनक ही था [छा. उ. १.९.३] ;[जै. उ. ब्रा. ३. १.२१]
शौनक (गृत्समद) n.  (सो. काश्य.) एक सविख्यात आचार्य, जो ‘ऋग्वेद-अनुक्रमणी’, ‘आरण्यक’, ‘ऋक्प्रातिशाख्य’ आदि ग्रंथों का कर्ता माना जाता है । महाभारत में इसे ‘योगशास्त्रज्ञ’ एवं ‘सांख्यशास्त्रनिपुण’ कहा गया है । आश्र्वलायन नामक सुविख्यात आचार्य का गुरु भी यही था, एवं कात्यायन, पतंजलि, व्यास, आदि आचार्य इसके ही परंपरा में उत्पन्न हुए थे । इसका अपना नाम गृत्समद था, एवं शौनक इसका पैतृक नाम था, जो इसे शुनक राजा का पुत्र होने के कारण प्राप्त हुआ था ।
शौनक (गृत्समद) n.  षड्गुरुशिष्य के द्वारा विरचित ‘कात्यायन सर्वानुक्रमणी’ के भाष्य में इसका जन्मवृत्त सविस्तृत रूप में दिया गया है । शुनहोत्र भारद्वाज ऋषि के पुत्र शौनहोत्र गृत्समद के द्वारा एक यज्ञ किया गया, उस समय स्वयं इन्द्र उपस्थित था । इस यज्ञ के समय असुरों के आक्रमण से शौनहोत्र ने इन्द्र का रक्षण किया । इस कारण इन्द्र ने प्रसन्न हो कर, शौनहोत्र को आशीर्वाद दिया ‘अगले जन्म में, तुम भृगुकुल में ‘शौनक भार्गव’ नाम से पुनः जन्म लोंगे’।
शौनक (गृत्समद) n.  इन ग्रंथों में, इसे गृत्समदपुत्र शुनक का पुत्र कहा गया है, एवं इसे ‘क्षत्रोपेत द्विज’, ‘मंत्रकृत्’, ‘मध्यमाध्वर्यु’, एवं ‘कुलपति’ कहा गया है [वायु. ९३.२४] । वायु में इसका भृगुवंशीय वंशक्रम निम्नप्रकार दिया गया हैः---रूरु (प्रमद्वरा)-शुनक-शौनक-उग्रश्रवस्। इसी ग्रंथ में अन्यत्र इसे नहुषवंशीय कहा गया है; एवं इसका वंशक्रम निम्नप्रकार दिया गया हैः-- धर्मवृद्ध-सुतहोत्र-गृत्समद-शुनक-शौनक [वायु. ९२.२६] । ‘ऋष्यानुक्रमणी’ के अनुसार, यह शुनहोत्र ऋषि का पुत्र था, एवं शुनक के इसे अपना पुत्र मानने के कारण, इसे ‘शौनक’ पैतृक नाम प्राप्त हुआ। यह पहले अंगिरस्गोत्रीय था, किन्तु बाद में भृगु-गोत्रीय बन गया । महाभारत के अनुसार, दशसहस्त्र विद्यार्थियों के भोजन एवं निवास की व्यवस्था कर, उन्हें विद्यादान करनेवाले गुरूकुलप्रमुख को ‘कुलपति’ उपाधि दी जाती थी [म. आ. १.१] ;[ह. वं. १.१.४ नलीकंठ] । भागवत में इसे चातुर्वर्ण्य का प्रवर्तक, एवं ‘बह्वृचप्रवर’ कहा गया है [भा. १.४.१, ९.१७३] ;[विष्णु. ४.८.१] । वायु में इससे ही चारों वर्णों की उत्पत्ति होने का निर्देश प्राप्त है [वायु. ९२.३-४] ;[ब्रह्म. ११.३४] ;[ह. वं. १.२९.६-७]
शौनक (गृत्समद) n.  इसने ऋग्वेद के द्वितीय मंडल की पुनर्रचना की, एवं इस मंडल में से ‘स जनास इंद्रः’ नामक बारहवें सूक्त का प्रणयन किया । इसने ऋक्संहिता के बाष्कल एवं शाकल शाखाओं का एकत्रीकरण कर, उन दोनों के सहयोग से शाकल अथवा शैशिरेय शाखांतर्गत ऋक्संहिता का निर्माण किया । शौनक के द्वारा निर्मित नये ऋक्संहिता की सूक्तों की संख्या १०१७ बतायी गयी है ।
शौनक (गृत्समद) n.  ऋग्वेद की उपलब्ध अनुक्रमणियों में से शौनक की अनुक्रमणी प्राचीनतम मानी जाती है, जो कात्यायन के द्वारा विरचित ऋग्वेद सर्वानुक्रमणी से काफ़ी पूर्वकालीन प्रतीत होती है । शौनक के अनुक्रमणी में ऋग्वेद का विभाजन, मंडल, अनुवाक एवं सूक्तों में किया गया है, जो अष्टक, अध्याय, वर्ग आदि में विभाजन करनेवाले कात्यायन से निश्चित ही प्राचीन प्रतीत होता है ।
शौनक (गृत्समद) n.  पौराणिक साहित्य में शौनक ऋषि के द्वारा आयोजित किये गये यज्ञों (सत्रों) का निर्देश प्राप्त है, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख थेः-- १. नैमिषारण्य द्वादशवर्षीय सत्र [म. आ. १.१.१] ;[ब्रह्म. १.११] ; २. नैमिषारण्य दीर्घसत्र [मत्स्य. १.४] ;[अग्नि. १.२] ; ३. नैमिषारण्य सहस्त्रवार्षिक सत्र [भा. १.१.४] ;[पद्म. आदि. १.६] । इसके द्वारा अयोजित द्वादशवर्णीय सत्र में रोमहर्षण सूत ने महाभारत का कथन किया था [म. आ. १.१] । इसके द्वारा प्रार्थना किये जाने पर, नैमिषारण्य के सहस्त्रवर्षीय सत्र में रौमहर्षणि सूत ने प्रायोपवेशन करनेवाले परिक्षित् राजा को शुक के भागवत पुराण का कथन किया [भा. १.४.१] । यह पुराण परिक्षित्-शुकसंवादात्मक है, एवं उसमें कृष्ण का जीवनचरित्र अत्यंत प्रासादिक शैली से वर्णन किया गया है ।
शौनक (गृत्समद) n.  इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ उपलब्ध हैः---१. ऋक्प्रातिशाख्य; २. ऋग्वेद छंदानुक्रमणी; ३. ऋग्वेद ऋष्यानुक्रमणी; ४. ऋग्वेद अनुवाकानुक्रमणी; ५. ऋग्वेद सूक्तानुक्रमणी; ६. ऋग्वेद कथानुक्रमणी; ७. ऋग्वेद पादविधान; ८. बृहद्देवता; ९. शौनक-स्मृति १०. चरणव्यूह; ११. ऋग्विधान। शौनक के उपर्युक्त ग्रंथों में इसके द्वारा बतायी गयी ऋग्वेद की विभिन्न अनुक्रमणियॉं प्रमुख है । षड्गुरुशिष्य ने कात्यायन सर्वानुक्रमणी के भाष्य में, शौनक के द्वारा विरचित अनुक्रमणियों की संख्या कुल दस बतायी है, किंतु उनमें से केवल चार ही अनुक्रमणियॉं आज उपलब्ध हैं।
शौनक (गृत्समद) n.  उपर्युक्त ग्रंथों के अतिरिक्त, इसके नाम पर शौनक-गृह्यसूत्र, शोनक-गृह्यपरिशिष्ट आदि अन्य छोटे छोटे ग्रंथ हैं (C.C.) । मत्स्य के अनुसार इसने एक वास्तुशास्त्रसंबंधी ग्रंथ की भी रचना की थी [मत्स्य. २५२.३] । सायणभाष्य से प्रतीत होता है कि, ‘ऐतरेय आरण्यक’ का पाँचवाँ आरण्यक इसके के ही द्वारा निर्माण किया गया था [ऐ. आ. १.४.१]
शौनक (गृत्समद) n.  शौनक के द्वारा विरचित ‘ऋक्प्रातिशाख्य’ उपलबध प्रातिशाख्य ग्रंथों में प्राचीनतम माना जाता है । शौनक के इस ग्रंथ में शाकल शाखान्तर्गत विभिन्न पूर्वाचार्यों के अभिमत उद्धृत किये गये है । वैदिक ऋचाओं का उच्चारण, एवं विभिन्न शाखाओं में प्रचलित उच्चारणपद्धति की जानकारी भी शौनक के इस ग्रंथ में दी गयी है । शौनक के प्रातिशाख्य में व्याकरणकार व्याडि का निर्देश पुनः पुनः आता है, जिससे प्रतीत होता है कि, व्याडि इसीका ही शिष्य था [ऋ. प्रा. २०. २१४] व्याडि ने अपने ‘विकृतवल्ली’ नामक ग्रंथ के प्रारंभ में शौनक को गुरु कह कर इसका वंदन किया है (व्याडि देखिये) । ‘शुक्लयजुर्वेद प्रातिशाख्य’ में संधिनियमों के संबंध में मतभेद व्यक्त करते समय, इसके मतों का उद्धरण प्राप्त है [शु. प्रा. ४.१२०] । शब्दों के अंत में कौन से वर्ण आते है, इस संबंध में इसके उद्धरण ‘अथर्ववेद प्रातिशाख्य’ में प्राप्त हैं [अ. प्रा. १.८]
शौनक (गृत्समद) n.  ‘शौनकीय शिक्षा’ में दिये गये एक सूत्र का उद्धरण पाणिनि के अष्टाध्यायी में प्राप्त है [पा. सू. ४.३.१०६] । इसी शौनकीय शिक्षा में ऋग्वेद के शाखाप्रवर्तक शौनक को ‘कल्पकार’ कहा गया है, जिससे प्रतीत होता है कि, ‘शाखा’ का नामांतर ‘कल्प’ था । गंगाधर भट्टाचार्य विरचित ‘विकृति कौमुदी’ नामक ग्रंथ में इन दोनों की समानता स्पष्ट रूप से वर्णित है (शाकलाः शौनकः सर्वे कल्पं शाखां प्रचक्षते) ।
शौनक (गृत्समद) n.  जनमेजय परिक्षित राजा के पुत्र शनानीक को इसने तत्त्वज्ञान की शिक्षा प्रदान की थी [विष्णु. ४.२१.२] । महाभारत में इसका निर्देश असित, देवल, मार्कंडेय, गालव, भरद्वाज, वसिष्ठ, उद्दालक, व्यास आदि ऋषियों के साथ अत्यंत गौरवपूर्ण शब्दों में किया गया है [म. व. ८३. १०२-१०४] । द्वैतवन में जिन ऋषियों ने धर्म का स्वागत किया था, उनमें यह प्रमुख था [म. व. २८.२३]
शौनक (गृत्समद) n.  शौनक का प्रमुख शिष्य आश्र्वलायन था । अपने गुरु को प्रसन्न करने के लिए आश्र्वलायन ने गृह्य़ एवं श्रौतसूत्रों की रचना की। आश्र्वलायन का यह ग्रंथ देखकर शौनक इतना अधिक प्रसन्न हुआ कि, इसने अपने श्रौतशास्त्रविषयक ग्रंथ विनष्ट किया (विपाटितम्) । ऋग्वेद से संबंधित शौनक के दस ग्रंथों का अध्ययन करने के बाद, आश्र्वलायन ने अपने गृह्य़ एवं श्रौतसूत्रों की, एवं ऐतरेय आरण्यक के चतुर्थ आरण्यक की रचना की। शौनक के दस एवं आश्र्वलायन के तीन ग्रंथ आश्र्वलायन के शिष्य कात्यायन को प्राप्त हुए। कात्यायन ने स्वयं यजुर्वेदकल्पसूत्र, सामवेद उपग्रंथ आदि की रचना की, जिन्हें उसने अपने शिष्य पतंजलि (योगशास्त्रकार) को प्रदान किये। इस प्रकार शौनक की शिष्य परंपरा निम्नप्रकार प्रतीत होती हैः-- शौनक-आश्र्वलायन-कात्यायन-पतंजलि-व्यास।
शौनक (स्वेदायन) n.  एक यज्ञशास्त्रनिपुण आचार्य [श. ब्रा. ११.४.१.२-३] ;[गो. ब्रा. १.३.६]
शौनक II. n.  एक पैतृकनाम, जो निम्नलिखित आचार्यों के लिए प्रयुक्त किया गया हैः-- १. अतिधन्वन् [छां. उ. १.९.३] ; २. इंद्रोत देवापि [श. ब्रा. १३.५, ३.५.१] ; ३. स्वैदायन [श. ब्रा. ११.४.१.२] ; ४. दृति ऐंद्रोत [व. ब्रा. २] ;।
शौनक III. n.  एक आचार्य, जो रौहिणायन नामक, आचार्य का गुरु था [वृ. उ. २.५.२०, ४.५.२६ माध्यं.]

शौनक     

कोंकणी (Konkani) WN | Konkani  Konkani
noun  सगल्या शास्त्रांत खांपो आशिल्लो असो एक खूबच विद्वान रुशी   Ex. शौनकाचें वर्णन हरिवंश पुराणांत लेगीत मेळटा
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
शौनक रुशी
Wordnet:
benশৌনক ঋষি
gujશૌનક
hinशौनक
kasشونَک , شونَک ریش
marशौनक
oriଶୌନକ ଋଷି
panਸ਼ੌਨਕ
sanशौनकः
urdشونک , شونک رشی

शौनक     

मराठी (Marathi) WN | Marathi  Marathi
noun  सर्व शास्त्रांत पारंगत असलेले एक विद्वान ऋषी   Ex. शौनकचे वर्णन हरिवंश पुराणांतदेखील आहे.
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
शौनक ऋषी
Wordnet:
benশৌনক ঋষি
gujશૌનક
hinशौनक
kasشونَک , شونَک ریش
kokशौनक
oriଶୌନକ ଋଷି
panਸ਼ੌਨਕ
sanशौनकः
urdشونک , شونک رشی

शौनक     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
शौनक  m. m. (patr.fr.शुनकg.बिदा-दि) N. of various authors and teachers (also with इन्द्रोत and स्वैदायन; esp. of the celebrated grammarian, author of the ऋग्-वेदप्रातिशाख्य, the बृहद्-देवता, and various other works; he is described as the teacher of कात्यायन and especially of आश्वलायन; he is said to have united the बाष्कल and शाकलशाखाs, and is sometimes identified with the Vedic ऋषिगृत्स-मद; but according to the विष्णु-पुराण, Ś° was a son of गृत्समद, and originated the system of four castes; he is quoted in [ĀśvŚr.] ; [APrāt.] and, [VPrāt.] ; the various legends about him are very confused), [ŚBr.] ; [Up.] ; [MBh.] &c.
pl. the descendants and pupils of Ś°, [Hariv.]

शौनक     

शौनकः [śaunakḥ]  N. N. of a great sage, the reputed author of the Ṛigveda Prātiśākhya and various other Vedic compositions.

शौनक     

Shabda-Sagara | Sanskrit  English
शौनक  m.  (-कः) The name of an inspired legislator older than MANU.

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