मोहे लगा है प्रेम हरी भजननका ॥धृ०॥
भजनबिना मोहे कछु नही भावें ।
झूठा है जग सपननका । मोहे० ॥१॥
प्रभुबिन कोई नही है प्यारा ।
पकर ध्यान गुरु चरननका ।मोहे० ॥२॥
अनन्य गुरुपदीं शरण होकर ।
अरपन करो तनमनधनका ।मोहे० ॥३॥
वारी कहे हरी भजन करके ।
मन करलें अब नीका ।मोहे० ॥४॥