राम भरोसा राखिये, ऊनित नहिं काई ।
पूरनहारा पूरसी, कलाइ मत भाई !
जल दिखै आकाससे कहो कहाँसे आवै ?
बिन जतना ही चहुँ दिसा, दह चाल चलावै ।
चात्रिक भू-जल ना पिवै, बिन अहार न जीवै ।
हर वाहीको पूरवै, अन्तरगत पीवै ।
राजहंस मुकता चुगै, कछु गाँठ न बाँधै,
ताको साहब देत है, अपनों ब्रत साधै ।
गरभ-बासमें जाय करि, जिव उद्यम न करही;
जानराय जानै सबै, उनको वहिं भरही ।
तीन लोक चौदह भुवन, करै सहज प्रकासा ।
जाके सिर समरथ धनी, सोचै क्या दासा?
जबसे यह बाना बना, सब समझ बनाई ।
'दरिया' बिकलप मैटिके, भज राम सहाई ॥