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जाके उर उपजी नहिं भाई ! ...

भजन - जाके उर उपजी नहिं भाई ! ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


जाके उर उपजी नहिं भाई ! सो क्या जानै पीर पराई ॥

ब्यावर जानै पीरकी सार, बाँझ नार क्या लखै बिकार ।

पतिब्रता पतिको ब्रत जानै, बिभचारिन मिल कहा बखानै ॥

हीरा पारख जौहरि पावै, मूरख निरखके कहा बतावै ।

लागा घाव कराहै सोई, कोतुकहारके दर्द न कोई ॥

राम नाम मेरा प्रान-अधार, सोई राम रस-पीवनहार ।

जन 'दरिया' जानैगा सोई, प्रेमकी भाल कलेजे पोई ॥

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Last Updated : December 25, 2007

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