जाके उर उपजी नहिं भाई ! सो क्या जानै पीर पराई ॥
ब्यावर जानै पीरकी सार, बाँझ नार क्या लखै बिकार ।
पतिब्रता पतिको ब्रत जानै, बिभचारिन मिल कहा बखानै ॥
हीरा पारख जौहरि पावै, मूरख निरखके कहा बतावै ।
लागा घाव कराहै सोई, कोतुकहारके दर्द न कोई ॥
राम नाम मेरा प्रान-अधार, सोई राम रस-पीवनहार ।
जन 'दरिया' जानैगा सोई, प्रेमकी भाल कलेजे पोई ॥