साधो, हरि-पद कठिन कहानी ।
काजी पण्डित मरम न जानै,
कोइ-कोइ बिरला जानी ॥
अलहको लहना, अगहको गहना,
अजरको जरना, बिन मौत मरना ।
अधरको धरना, अलखको लखना,
नैन बिन देखना, बिनु पानी घट भरना ॥
अमिलसूँ मिलना, पाँव बिन चलना
बिन अगिनके दहना, तीरथ बिन न्हावना ।
पन्थ बिन जावना, बस्तु बिनु पावना,
बिन गेहके रहना, बिना मुख गावना ॥
रूप न रेख, बेद नहिं सिमृति,
नहि जाति बरन कुल-काना ।
जन 'दरिया' गुरुगमतें पाया,
निरभय पद निरबाना ॥