जीव बटाऊ रे बहता मारग माईं ।
आठ पहरका चालना, घड़ी इक ठहरै नाईं ॥
गरभ जनम बालक भयो रे, तरुनाई गरबान ।
बृद्ध मृतक फिर गर्भबसेरा, यह मारग परमान व
पाप-पुन्य सुख-दुःखकी करनी, बेड़ी थारे लागी पाँय ।
पञ्च ठगोंके बसमें पड़ो रे, कब घर पहुँचै जाय ॥
चौरासी बासो तू बस्यो रे, अपना कर-कर जान ।
निस्चय निस्चल होयगो रे, तूँ पद पहुँचै निर्बान ॥
राम बिना तोको ठौर नहीं रे, जहँ जावै तहँ काल ।
जन दरिया मन उलट जगतसूँ, अपना राम सँभाल ॥