जो धुनिया तौ भी मैं राम तुम्हारा ।
अधम कमीन जात मति-हीना, तुम तौ हौ सिरताज हमारा ॥
कायाका जंत्र सब्द मन मुथिया सुखमन ताँत चढ़ाई ।
गगन-मँडलमें धुनियाबैठा, मेरे सतगुरु कला सिकाई ॥
पाप पान हर कुबुध काँकड़ा, सहज-सहज झड़ जाई ।
घुंडी गाँठ रहन नहिं पावै, इकरंगी होय आई ॥
इकरँग हुआ, भरा हरि चोला, हरि कहै, कहा दिलाऊँ ।
मैं नाहीं मेहनतका लोभी, बकसो मौज भक्ति निज पाऊँ ॥
किरपा करि हरि बोले बानी, तुम तौ हौ मम दास ।
'दरिया' कहे, मेरे आतम भीतर मेलो राम भक्त-बिस्वास ॥