साधो, अलख निरंजन सोई ।
गुरु परताप राम-रस निर्मल, और न दूजा कोई ॥
सकल ज्ञानपर ज्ञान दयानिधि, सकल जोतिपर जोती ।
जाके ध्यान सहज अघ नासै, सहज मिटै जम छोती ॥
जाकी कथाके सरवनतें ही, सरवन जागत होई ।
ब्रह्मा-बिस्नु-महेस अरु दुर्गा, पार न पावै कोई ॥
सुमिर-सुमिर जन होइहैं राना, अति झीना-से-झीना ।
अजर, अमर, अच्छय, अबिनासी, महा बीन परबीना ॥
अनंत संत जाके आस-पिआसा, अगन मगन चिर जीवैं ।
जन 'दरिया' दासनके दासा, महाकृपा-रस पीवैं ॥